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मोक्षशास्त्र
४- अधिकरण- वस्तुके आधारको अधिकररण कहते हैं । ५-स्थिति-वस्तुके कालकी मर्यादाको स्थिति कहते हैं । ६ - विधान - वस्तुके भेदोंको विधान कहते हैं । उपरोक्त ६ प्रकारसे सम्यग्दर्शनका वर्णन निम्नप्रकार किया जाता है१ - निर्देश - जीवादि सात तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धापूर्वक निज शुद्धात्माका प्रतिभास - विश्वास - प्रतीतिको निर्देश कहते हैं ।
२- स्वामित्व - चारो गतिके संज्ञी पंचेन्द्रिय भव्य जीव स्वामी होते हैं।
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३ - साधन-साधनके दो भेद है अंतरंग और बाह्य । अन्तरंग साधन ( अन्तरङ्ग कारण ) तो स्व शुद्धात्माके त्रिकाली ज्ञायकभाव ( पारिणामिक भाव ) का आश्रय है और बाह्य कारण भिन्न २ प्रकारके होते है । तियंच और मनुष्य गति ( १ ) जातिस्मरण (२) धर्म श्रवण (३) जिनबिम्ब दर्शन ये निमित्त होते है; देवगतिमें बारहवे स्वर्ग से पहले (१) जातिस्मरण (२) धर्मं श्रवण (३) जिन कल्याणक दर्शन और (४) देवऋद्धिदर्शन कारण होता है । और बारहवें स्वर्गसे १६ वे स्वर्ग पर्यंत ( १ ) जातिस्मरण (२) धर्मं श्रवण और (३) जिन कल्याणक दर्शन कारण है । नवग्रैवेयक में (१) जाति स्मरण और (२) धर्म श्रवण होता है । नरकगतिमें तीसरे नरक तक जाति स्मरण, धर्म श्रवरण और दुःखानुभव निमित्त होता है एवं चौथे से सातवे नरक तक जातिस्मरण और दुःखानुभव निमित्त होता है ।
नोट: -- उपरोक्त धर्म श्रवरण सम्यग्ज्ञानियोसे प्राप्त होना चाहिये ।
शंका- सभी नारकी जीव विभंगज्ञानके द्वारा एक, दो या तीन आदि भव जानते हैं, उससे सभी को जातिस्मरण होता है इसलिए क्या सभी नारकी जीव सम्यग्दृष्टि हो जायेगे ?
समाधान - सामान्यतया भवस्मरण द्वारा सम्यक्त्वकी प्राप्ति नहीं होती किन्तु पूर्वभवमें धर्म बुद्धिसे किये हुए अनुष्ठान विपरीत ( विफल ) थे ऐसी प्रतीति प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण होती है इसी बातको ध्यान में रखकर भवस्मरणको सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण कहा है। नारकी जीवों