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मोक्षशास्त्र
उत्तर --- जिसने सर्वज्ञकी सत्ताका निर्णय किया है उसके जिन प्रतिमाके ' दर्शनसे सम्यग्दर्शन रूप फल होता है दूसरेको नही । उन सभीको नियमसे श्रपने आत्मकल्याणरूप कार्यकी सिद्धि नही होती, जो जीव अपने सत्य पुरुपार्थसे निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट करता है उसीको जिनविम्बदर्शन निमित्त कहा जाता है । जिन्होंने सर्वज्ञका तो निश्चय किया नही किन्तु मात्र कुल पद्धति, संप्रदायके श्राश्रयसे या मिथ्या धर्म - बुद्धिसे दर्शन पूजनादि रूप प्रवृत्ति करते हैं । और कितनेक जो मतपक्षके हठग्राहीपनेसे अन्यदेवको नहीं मानते, मात्र जिनदेवादिके सेवक बने हुये हैं उनके भी नियमसे अपने आत्मकल्याणरूप कार्यकी सिद्धि नही होती ।
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प्रश्न- यदि सर्वज्ञकी सत्ताका निश्चय हमसे नही हुवा तो क्या हुआ ? ये देव तो सच्चे देव हैं, उनकी पूजनादि करना व्यर्थ थोड़े ही होती है ?
उत्तर - यदि किंचित् मंद कषाय रूप परिणति होगी तो पुण्य बंघ होगा परन्तु जिनमतमे तो देव दर्शनसे सम्यग्दर्शनरूप फल होना बतलाया है सो तो नियमसे सर्वज्ञको सत्ताके जाननेसे ही होगा दूसरी तरहसे नहीं । इसलिए जिन्हें सच्चा जैनी होना है उन्हे तो सत्देव, सद्गुरु और सतुशास्त्र के ग्राश्रय से सर्वज्ञको सत्ताका तत्त्व निर्णय करना योग्य है; किन्तु जो तत्त्व निर्णय तो नही करते श्रीर पूजा, स्तोत्र, दर्शन, त्याग, तप, वैराग्य, संयम संतोष आदि सभी कार्य करते हैं उनके ये सभी कार्य झूठे हैं । इसलिये सत् ग्रागमका सेवन, युक्तिका अवलंबन, परम्परा सद्गुरुओका उपदेश और स्वानुभवके द्वारा तत्त्व निर्णय करना योग्य है ।
प्रश्न - यह कहा है कि मिथ्यादृष्टि देव चार कारणो से प्रथम श्रमिक सम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं उनमें एक 'जिनमहिमा' कारण वतलाया है किन्तु जिनविम्वदगंन नही बतलाया, इसका क्या कारण है ?
उत्तर- - जिनबिम्ब दर्शनका जिनमहिमा दर्शनमे समावेश होजाता जिनविवके बिना जिनमहिमाकी सिद्धि नही होती ।