________________
मोक्षशास्त्र
तर्क - २ - द्रव्यार्थिक नयका विषय द्रव्य और पर्यायार्थिक नयका विषय पर्याय है; तथा पर्याय गुणका अंश होनेसे पर्याय में गुण आगये, यह मानकर पार्थिक नया प्रयोग नही किया है; यदि इसप्रकार कोई कहे तो ऐसा भी नहीं है; क्योंकि पर्यायमें सम्पूर्ण गुरणका समावेश नही हो जाता ।
गुणार्थिक नयका प्रयोग न करनेका वास्तविक कारण
शास्त्रोंमें द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक-दो नयोंका ही प्रयोग किया गया है । उन दोनों नयोंका वास्तविक स्वरूप यह है
३४
---
पर्यायार्थिक नयका विषय जीवकी अपेक्षित-बंध - मोक्षको पर्याय है, और उस ( बंध - मोक्षकी अपेक्षा ) से रहित त्रैकालिक शक्तिरूप गुण तथा कालिक शक्तिरूप निरपेक्ष पर्याय सहित त्रैकालिक जीवद्रव्य सामान्य वही द्रव्यार्थिक नयका विषय है, - इस अर्थमे शास्त्रों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नका प्रयोग किया गया है, इसलिये गुणार्थिक नयको आवश्यकता नहीं रहती । जीवके अतिरिक्त पाँच द्रव्योंके त्रैकालिक ध्रुव स्वरूपमें भी उसके गुणोंका समावेश हो जाता है, इसलिये पृथक् गुरणार्थिक नयकी श्रावश्यकता नही है ।
शास्त्रों में द्रव्यार्थिक नयका प्रयोग होता है, इसमें गंभीर रहस्य है । द्रव्यार्थिक नयका विषय त्रैकालिक द्रव्य है, और पर्यायार्थिक नयके विषय क्षणिक पर्याय है । द्रव्यार्थिक नयके विषयमे पृथक् गुरण नही है क्योकि गुरणको पृथक् करके लक्षमें लेने पर विकल्प उठता है, और गुण भेद तथा विकल्प पर्यायार्थिक नयका विषय है ।
( ११ ) द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नयके दूसरे नामद्रव्यार्थिक नयको निश्चय, शुद्ध, सत्यार्थ, परमार्थ, भूतार्थं, स्वावलम्वी स्वाश्रित, स्वतंत्र, स्वाभाविक, त्रैकालिक, ध्रुव, अभेद और स्वलक्षी नय कहा जाता है ।
$
* नयका विशेष स्वरूप जानना हो तो प्रवचनसारके अन्तमें दिये गये ४७ नयोका अभ्यास करना चाहिये ।