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अध्याय १ सूत्र ६ (९)प्रमाणके प्रकार
परोक्ष-उपात्त और अनुपात्त: पर ( पदार्थों ) द्वारा प्रवर्ते वह परोक्ष ( प्रमाणज्ञान ) है ।
प्रत्यक्ष-जो केवल आत्मासे ही प्रतिनिश्चिततया प्रवृत्ति करे सो प्रत्यक्ष है।
प्रमाण सच्चा ज्ञान है। उसके पाँच भेद हैं-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल । इनमेसे मति और श्रुत मुख्यतया परोक्ष हैं, अवधि और मनःपर्यय विकल (-आंशिक-एकदेश ) प्रत्यक्ष है तथा केवलज्ञान सकलप्रत्यक्ष है।
(१०) नयके प्रकार
नय दो प्रकारके है-द्रव्याथिक और पर्यायाथिक । इनमेसे जो द्रव्यपर्यायस्वरूप वस्तुमे द्रव्यका मुख्यतया अनुभव करावे सो द्रव्याथिकनय है, और जो पर्यायका मुख्यतया अनुभव कराये सो पर्यायार्थिक नय है । द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय क्या है ?
गुणार्थिक नय क्यों नहीं ? शास्त्रोमें अनेक स्थलों पर द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय का उल्लेख मिलता है, किन्तु कही भी 'गुणार्थिक नय' का प्रयोग नहीं किया गया है। इसका क्या कारण है ? सो कहते है:
तर्क-१-द्रव्यार्थिक नयके कहनेसे उसका विषय गुण, और पर्यायार्थिक नयके कहनेसे उसका विषय-पर्याय, तथा दोनों एकत्रित होकर जो प्रमाणका विषय-द्रव्य है सो सामान्य विशेषात्मक द्रव्य है; इसप्रकार मानकर गुणार्थिक नयका प्रयोग नही किया है। यदि कोई ऐसा कहे तो यह ठीक नही है क्योकि अकेले गुण द्रव्याथिक नयका विषय नही है।
नोट:-*उपात्त प्राप्त; (इन्द्रिय, मन इत्यादि उपात्त पर पदार्थ हैं। अनुत्त=अप्राप्त, (प्रकाश, उपदेश इत्यादि अनुपात्त पर पदार्थ हैं)