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मोक्षशास्त्र
८ - जीव अपने भाव कर सकता है और पर वस्तुका कुछ नहीं कर सकता - ऐसा जानना सो सम्यक् श्रनेकान्त है ।
जीव सूक्ष्म पुद्गलोंका कुछ नहीं कर सकता, किंतु स्थूल पुद्गलों का कर सकता है, ऐसा जानना - सो मिथ्या अनेकान्त है ।
(७) सम्यकू
और मिथ्या एकान्तका स्वरूप
निजस्वरूपसे अस्तिरूपता और पर-रूपसे नास्तिरूपता - आदि वस्तुका जो स्वरूप है उसकी अपेक्षा रखकर प्रमाणके द्वारा ज्ञात पदार्थ के एक देशको ( एक पहलुको ) विषय करनेवाला नय सम्यक् एकान्त है; और किसी वस्तुके एक धर्मका निश्चय करके उस वस्तुमें रहनेवाले अन्य धर्मोका निषेध करना सो मिथ्या एकान्त है ।
(८) सम्यक् और मिथ्या एकान्तके दृष्टान्त
१- 'सिद्ध भगवन्त एकान्त सुखी हैं' ऐसा जानना सो सम्यक् एकांत है, क्योंकि 'सिद्धजीवोको बिलकुल दुःख नही है' यह बात गर्भितरूपसे उसमे आजाती है । और सर्व जीव एकान्त सुखी हैं - ऐसा जानना सो मिथ्या एकान्त है, क्योकि उसमे, अज्ञानी जीव वर्तमानमें दुखी है, उसका निषेध होता है ।
२ - 'एकान्त वोघवीजरूप जीवका स्वभाव है' ऐसा जानना सो सम्यक् एकान्त है, क्योकि छद्मस्थ जीवकी वर्तमान ज्ञानावस्था पूर्ण विकासरूप नही है यह उसमें गर्भितरूपसे आजाता है ।
४- 'सम्यग्ज्ञान धर्म है' ऐसा जानना सो सम्यक् एकान्त है, क्योंकि 'सम्यग्ज्ञान पूर्वक वैराग्य होता है' -- यह गर्भित रूपसे उसमें श्राजाता है । सम्यग्ज्ञान रहित 'त्याग मात्र धर्म है' - ऐसा जानना सो मिथ्या एकान्त है, क्योकि वह सम्यग्ज्ञान रहित होनेसे मिथ्या त्याग है !