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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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अपने पुण्यातिशयके कारण तीर्थंकर भी वन सकता है । अपने सातिशय पुण्यके कारण वह तीर्थ- प्रवर्तक पदको प्राप्त हो जाता है । तथा जो व्यक्ति इस मन्त्रका आठ करोड, माठ लाख, माठ हजार और आठ सौ माठ चार लगातार जाप करता है, वह शाश्वतपदको प्राप्त हो जाता है । लगातार सात लाख जप करनेवाला व्यक्ति सभी प्रकारके कष्टोसे मुक्ति प्राप्त करता है तथा दारिद्र्य भी उसका नष्ट हो जाता है । घूप देकर एक लाख बार जपनेवाला भी अपनी अभीष्ट मन कामनाको पूर्ण करता है । इस मत्यका अचिन्त्य प्रभाव है |
णमोकार मन्त्र का जाप करनेके लिए सर्वप्रथम आठ प्रकारकी शुद्धियोका होना आवश्यक है । १ द्रव्यशुद्धि - पचेन्द्रिय तथा मनको वश कर कपाय और परिग्रहका शक्तिके अनुसार त्याग णमोकार मन्त्रके जाप करने की विधि कर कोमल और दयालुचित्त हो जाप करना । यहाँ द्रव्यशुद्धिका अभिप्राय पात्रको अन्तरंग शुद्धि से है । जाप करनेवालेको यथाशक्ति अपने विकारोको हटाकर ही जाप करना चाहिए । अन्तरगमे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, माया आदि विकारोको हटाना आवश्यक है । २. क्षेत्रशुद्धि--- निराकुल स्थान, जहाँ हल्ला-गुल्ला न हो तथा डाँस, मच्छर आदि बाधक जन्तु न हो । चित्तमे क्षोभ उत्पन्न करनेवाले उपद्रव एव शीत-उष्णकी वाघा न हो, ऐसा एकान्त निर्जन स्थान जाप करनेके लिए उत्तम है। घर के किसी एकान्त प्रदेशमे, जहाँ अन्य किसी प्रकारकी बाधा न हो और पूर्ण शान्ति रह सके, उस स्थानपर भी जाप किया जा सकता है । ३. समय शुद्धि - प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्या समय कमसे कम ४५ मिनिट तक लगातार इस महामन्त्रका जाप करना चाहिए । जाप करते समय निश्चिन्त रहना एवं निराकुल होना
१. वयट्टमया
मदरस भट्टलक्स घट्टकोटी | जो गुणः भचिजुडो, सी पावर सासयं ठाये ॥३॥