________________
७०
मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
योऽसख्यदु खक्षयकारणस्मृतिः य ऐहिकामुष्मिकसौख्यकामधुक । यो दुष्षमायामपि कल्पपादपो मन्त्राधिराजः स कथ न जप्यते ।।
न यदीपेन सूर्येण चन्द्रेणाप्यपरेण दा। तमस्तदपि निर्नाम स्यान्नमस्कारतेजसा ।।
-न० मा० षष्ठ अ० श्लो० २३,२४ अर्थात्-भावसहित स्मरण किया गया यह णमोकारमन्त्र असख्य दु खोको क्षय करनेवाला तथा इहलौकिक और पारलौकिक समस्त सुखोको देनेवाला है। इस पचमकालमे कल्पवृक्षके समान सभी मनोरथोको पूर्ण करनेवाला यह मन्त्र ही है, अत संसारी प्राणियोको इसका जप अवश्य करना चाहिए। जिस अज्ञान, पाप और सक्लेशके अन्धकारको सूर्य, चन्द्र और दीपक दूर नही कर सकते हैं, उस घने अन्धकारको यह मन्त्र नष्ट कर देता है।
इस मन्त्रके चिन्तन, स्मरण और मनन करनेसे भूत, प्रेत, ग्रहवाधा, राजभय, चोरभय, दुष्टभय, रोगभय आदि सभी कष्ट दूर हो जाते हैं । राग-द्वेषजन्य अशान्ति भी इस मन्त्रके जापसे दूर होती है। यह इस पचमकालमे कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न या कामधेनुके समान अभीष्ट फल देनेवाला है। जिस प्रकार समुद्रके मन्थनसे सारभूत अमृत एव दधिके मन्थनसे सारभूत घृत उपलब्ध होता है, उसी प्रकार आगमका सारभूत यह णमोकार मन्त्र है। इसकी माराधनासे सभी प्रकारके कल्याण प्राप्त होते हैं । श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी आदिकी प्राप्ति इस मन्त्रके जपसे होती है। कर्मकी ग्रन्थिको खोलनेवाला यही मन्त्र है तथा भावपूर्वक नित्य जप करनेसे निर्वाण पदकी प्राप्ति होती है।
भगवान्की पूजा, स्वाध्याय, सयम, तप, दान और गुरुभक्तिके साथ प्रतिदिन इस णमोकार मन्त्रका तीनो सन्ध्याओमे जो भक्तिभावसहित जाप करता है, वह इतना पुण्यास्रव करता है, जिससे चक्रवर्ती, अहमिन्द्र, इन्द्र आदिके पदोको प्राप्त करनेकी शक्ति उत्पन्न हो जाती है। ऐसा व्यक्ति