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मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन
परम आवश्यक है । ४. आसनशुद्धि-काष्ठ, शिला, भूमि, चटाई या शीतलपट्टीपर पूर्वदिशा या उत्तरदिशाकी ओर मुंह करके पद्मासन, खड्गासन या अर्धपद्मासन होकर क्षेत्र तथा कालका प्रमाण करके मौनपूर्वक इस मन्त्र का जाप करना चाहिए। ५ विनयशुद्धि-जिस आसनपर बैठकर जाप करना हो, उस आसनको सावधानीपूर्वक ईर्यापथ शुद्धिके साथ साफ करना चाहिए तथा जाप करनेके लिए नम्रतापूर्वक भीतरका अनुराग भी रहना आवश्यक है। जबतक जाप करने के लिए भीतरका उत्साह नहीं । होगा, तबतक सच्चे मनसे जाप नही किया जा सकता। ६. मनःशुद्धिविचारोंकी गन्दगीका त्याग कर मनको एकाग्र करना, चचल मन इधर-उधर न भटकने पाये इसकी चेष्टा करना, मनको पूर्णतया पवित्र बनानेका प्रयास करना ही इस शुद्धिमे अभिप्रेत है । ७ वचनशुद्धि-धीरे-धीरे साम्यभावपूर्वक इस मन्त्रका शुद्ध जाप करना अर्थात् उच्चारण करनेमे अशुद्धि न होने पाये तथा उच्चारण मन-मनमे ही होना चाहिए। ८ कायशुद्धि-- शोचादि शकामोसे निवृत्त होकर यलाचारपूर्वक शरीर शुद्ध करके हलनचलन क्रियासे रहित जाप करना चाहिए। जापके समय शारीरिक शुद्धिका भी ध्यान रखना चाहिए ।
इस महामन्त्रका जाप यदि खड़े होकर करना हो तो तीन-तीन श्वासोच्छ्वासोंमे एक बार पढ़ना चाहिए। एक सौ आठ बारके जापमे कुल ३२४ श्वासोच्छ्वास-सांस लेना चाहिए।
जाप करनेकी विधियां--कमल जाप्य, हस्तागुलि जाप्य और माला जाप्य ।
कमल-जापविधि-अपने हृदयमे आठ पांखुड़ीके एक श्वेत कमलका विचार करे । उसकी प्रत्येक पांखुड़ीपर पीतवर्णके बारह-बारह बिन्दुओंकी कल्पना करे तथा मध्यके गोलवृत्त-करिणकामे बारह विन्दुओका चिन्तन करे । इन १०८ विन्दुओके प्रत्येक विन्दुपर एक-एक मन्त्रका जाप करता