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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
"तच्च मगल दुविहं णिबद्धमणिबद्धमिदि । तत्थ णिबद्ध णाम जो सुत्तस्मादीए सुत्तकत्तारेग णिवद्ध-देवदा-णमोक्कारो तं णिबद्ध मगलं । जो सुत्तस्सादीए सुत्तकतारेण कय देवदा णमोकारो तमणिबद्ध-मगल । इदं पुण जीवट्ठाण णियद्ध-मंगलं । यत्तो 'इमेसि चोहमण्हं जीवसमासाण' इदि एहस्स सुत्तस्सादीए णिबद - णमो अरिहंताणं' इच्चादिदेवदा-णमोकार-दसणाटो।" __ अर्थात् -मगल दो प्रकारका है-निबद्ध और अनिवद्ध । सूत्रके आदिमें सूत्रकर्ता द्वारा जो देवता-नमस्कार अन्यके द्वारा किया गया लिखा जाये अर्थात् पूर्व परम्परासे चले आये किसी मगलसूत्र या श्लोकको अथवा परम्परा-द्वारा निरूपित अर्थके आधारपर स्वरचित सूत्र या श्लोकको अंकित करना निबद्ध मगल है। रचनाके आदिमे मनसा या वचसा यो ही सूत्र या मगल वाक्य विना लिखे जो नमस्कार किया जाता है, वह अनिबद्ध कहलाता है । यहाँ 'जीवस्यान' नामक प्रयमखण्डागममे 'इमेसिं चोइसण्ह जीपसमासाण' इत्यादि जीवस्यानक इस सूत्रके पहले 'णमो अरिहन्ताण' इत्यादि मगलसूत्र, जो देवता नमस्कार रूपमें विद्यमान है, परम्पराप्राप्त निबद्ध मगल है।
उपर्युक्त विवेचनका निष्कर्ष यह है कि वीरसेन स्वामीके मान्यतानुसार यह मगलसूत्र परम्परासे प्राप्त चला आ रहा है, पुष्पदन्तने इसे यहाँ अकित कर दिया है । इमसे इस महामन्त्रका अनादित्व सिद्ध होता है ।
अलकारचिन्तामणिमे निवद्ध और अनिबद्ध मगलकी परिभाषा निम्न प्रकार की गयी है। जिनसेनाचार्यने निवद्धका अर्थ लिखित और अनिवद्धका अर्थ अलिखित या अनकित नहीं लिया है । वह लिखते हैं -
स्वकाव्यमुखे स्वकृतं पद्य निबद्धम्, परकृतमनिवदम् ।
१. धवला टोका, प्रथम पु०, पृ० ४१ ।