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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
अर्थात् — स्वरचित मगल अपने ग्रन्थंमे निवद्ध और अन्यरचित मंगलसूत्रको अपने ग्रन्थमे लिखना अनिबद्ध कहा जाता है ।
उक्त परिभाषा के आधारपर णमोकार मन्त्रको अनिवद्ध मगल कहा जायेगा । क्योकि आचार्य पुष्पदन्त इसके रचयिता नही है । उन्हें तो यह मन्त्र परम्परासे प्राप्त था, अत उन्होंने इस मगलवाक्यको ग्रन्थ के आदिमे अकित कर दिया । इसी आशयको लेकर वीरसेन स्वामीने घवला टीका ( ११४१ ) मे इसे अनिवद्ध मंगल कहा है ।
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वैशाली प्रतिष्ठानके निर्देशक श्री डॉ० हीरालालजीने वेदनाखण्डके ' णमो जिणाण' इस मंगलसूत्र की घवला टीकाके' आधारपर णमोकार मन्त्र के आदिकर्ता श्रीपुष्पदन्ताचार्यको सिद्ध करनेका प्रयास किया है किन्तु अन्य आर्प ग्रन्थोंके साथ तथा जीवट्ठाणखण्डके मंगलसूत्रकी धवला टीकाके साथ डॉक्टर साहबके मन्तव्यकी तुलना करनेपर प्रतीत होता है कि यह मन्त्र अनादि है | जैसे अग्निका उष्णत्त्व, जलका शीतत्व, वायुका स्पर्शवत्त्व एव आत्माका चेतनधर्म अनादि है, उसी प्रकार यह णमोकार मन्त्र अनादि है । अथवा अनादि जिनवाणीका अग होनेसे यह मन्त्र अनादि है। महावन्ध प्रथम भागकी प्रस्तावना मे बताया गया है कि "जिस प्रकार णमो जिणाण' आदि मंगलसूत्र भूतबलि द्वारा संगृहीत है, ग्रथित नही है, उसी प्रकार णमोकार मन्त्र रूपसे ख्वात अनादि मूलमन्त्र नामसे वन्दित 'रणमो अरिहताण' आदि भी पुष्पदन्त आचार्य द्वारा सग्रहीत है, ग्रथित नही है ।" मोक्षमार्ग अनादि है, इस मार्गके उपदेशक और पथिक भी अनादि हैं, तीर्थंकर प्रभुओ की परम्परा भी अनादि है । अन यह अनादि मूलमन्त्र भगवान्की दिव्यध्वनिसे प्राप्त हुआ है। सर्वज्ञ तीर्थंकर भगवान् ने अपनी दिव्यध्वनिसे जिन तत्त्वोका प्रकाशन किया, गरणधरदेवने उन्हें द्वादशाग वाणीका रूप दिया । अतएव
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१. धवला टीका, पुस्तक २, पृ० ३३-३६ । २. महाबन्ध, प्रथम भाग प्रस्तावना, पृ० ३० ।