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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन प्राणी विकारोके अधीन होनेके कारण ही व्याकुल है, एक क्षणको भी शान्ति नहीं है । आशा, तृष्णा सतत वेचैन किये रहती हैं।
विचारक महापुरुषोने विषय-कपायजन्य अशान्ति और वेचैनीको दूर करनेके लिए अनेक प्रकारके विधानोका प्रतिपादन किया है। नाना
प्रकारके मगल-वाक्योकी प्रतिष्ठा की है तथा मगल-वाक्योंकी
जीवनमे शान्ति और सुख प्राप्त करनेके लिए आवश्यकता
ज्ञान, भक्ति, कर्म और योग आदि मार्गोंका निरूपण किया है। कुछ ऐसे सूत्र, वाक्य, गाथा और श्लोकमे भी बतलाये गये हैं, जिनके स्मरण, मनन, चिन्तन और उच्चारणसे शान्ति मिलती है। मन पवित्र होता है, आत्मस्वरूपका श्रद्धान होता है तथा विषय-क्षायोकी आमक्तिको व्यक्ति छोडनेके लिए बाध्य हो जाता है । विकारोपर विजय प्राप्त करनेमे ये मगलवाक्य दृढ आलम्बन बन जाते हैं तथा आत्मकल्याणकी भावनाका परिस्फुरण होता है। विश्वके सभी मत-प्रवर्तकोने विकारोको - जीतने एव साधनाके मार्गमे अग्रसर होनेके लिए अपनी-अपनी मान्यतानुसार कुछ मगलवाक्योका प्रणयन किया है। अन्य मतप्रवर्तको-द्वारा प्रतिपादित मंगलवाक्य कहाँतक जीवनमे प्रकाश प्रदान कर सकते हैं, यह विचार करना प्रस्तुत रचनाका ध्येय नही है । यहाँ केवल यही बतलानेका प्रयल किया जायेगा कि जैनाम्नायमे प्रचलित मंगलवाक्य णमोकार मन्त्र किस प्रकार जीवनमे शान्ति प्रदान कर सकता है तथा दार्शनिक, मान्त्रिक एव लौकिक कल्याण-प्राप्तिकी दृष्टिसे उक्त वाक्यका क्या महत्त्व है, जिससे विकारोको शमन करनेमे सहायता मिल सके । आत्मकल्याणका मूल साधन सम्यग्दर्शन भी उक्त मगलवाक्यके स्मरणसे किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है, द्वादशांग जिनवाणीका परिज्ञान उक्त वाक्य-द्वारा किस प्रकार किया जा सकता है तथा जीवनकी आशा-तृष्णाजन्य अशान्ति किस प्रकार दूर हो जाती है, आदि बातोपर विचार किया जायेगा।
साधकको सर्वप्रथम अपनी छान-बीनकर अपने सच्चिदानन्द स्वरूपका