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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन २९ निश्चय करना अत्यावश्यक है । आत्मस्वरूपके निश्चय करनेपर भी जबतक
अनुकरणीय आदर्श निश्चित नही, तबतक अपने भशान्तिको दूर करनेका
स्वरूपको प्राप्त करनेका मार्ग अन्वेषण करना अमोघ साधन
असम्भव है। आदर्श शुद्ध सच्चिदानन्दरूप आत्मा ___णमोकार-मन्त्र
ही हो सकता है । कोई भी विकारग्रस्त प्राणी विकाररहित आदर्शको सामने पाकर अपने भीतर उत्साह, दृढसकल्प और स्फूर्ति उत्पन्न कर सकता है। चिदानन्द शान्तमुद्राका चित्र अपने हृदयमे स्थापित करनेसे विकारोका शमन होता है । वीतरागी, शान्त, अलौकिक, दिव्यज्ञानवारी, अनुपम दिव्य आनन्द और अनन्त सामर्थ्यवान् आत्माओका आदर्श सामने रखनेसे मिथ्याबुद्धि दूर हो जाती है, दृष्टिकोणमें परिवर्तन हो जाता है, राग-द्वेषकी भावनाएं निकल जाती हैं और आध्यात्मिक विकास होने लगता है । णमोकार मन्त्र ऐसा मगलवाक्य है, जिसमे द्वादशाग वाणीका सारभूत दिव्यात्मा पचपरमेष्ठीका पावन नाम निरूपित है । इस नामके श्रवण, मनन, चिन्तन और स्मरणसे कोई भी व्यक्ति अपने रागद्वेषरूप विकारोको सहजमे पृथक कर सकता है। विकारोका परिष्कार करने के लिए पचपरमेष्ठी के आदर्शसे उत्तम अन्य कोई आदर्श नही हो सकता।
साधारण व्यक्तिका भी इधर-उधर वासनाओके लिए भटकनेवाला मन इस मन्त्रके उच्चारण और चिन्तन-द्वारा स्वास्थ्य लाभ कर सकता है। इस मन्त्रमे प्रतिपादित भावना प्रारम्भिक साधक से लेकर उच्चश्रेणीके साधक तकको शान्ति और श्रेयोमार्ग प्रदान करनेवाली है । भारतीय दार्शनिकोका ही नहीं, विश्वके सभी दार्शनिकोका मत है कि जबतक व्यक्तिमे आस्तिक्य भाव नही, विशेष मगल-वाक्योके प्रति श्रद्धा नहीं; तबतक उसका मन स्थिर नहीं हो सकता है । आस्तिक व्यक्ति अपने आराध्य महापुरुपकी आराधना कर शान्ति लाभ करता है। घढ आस्था रखकर निर्दोप आत्माओका आदर्श सामने रखना तथा उन वीतरागी आत्माओके समान अपनेको बनानेका प्रयत्न करना प्रत्येक मनुष्यका परम कर्तव्य है । जो शान्ति