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मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन २२९ विचार चेतन मनमे प्रकाशित होने- चिन्तित रहना आर्तध्यान हैं। के पूर्व अवचेतन मनमे रहता है। आदत अधिरति
· १०४ आदत मनुष्यका अजित व्रतरूप परिणत न होना मानसिक गुण है। मनुष्यके जीवनअविरति है । इसके बारह भेद हैं। मे दो प्रकारकी प्रवृत्तियां काम असंयम
. २७ करती हैं - जन्मजात और अजित । इन्द्रियासक्ति और हिंसारूप अजित प्रवृत्तियां ही मादत है। परिणतिको असयम कहा जाता है। आनुपूर्वी
१४८ आख्यातिक - १२३- उच्च गुणोके आधारपर या
क्रियावाचक धातुओसे निष्पन्न किसी-किसी विशेष क्रमके आधारहोनेवाले शब्द आख्यातिक कहलाते पर किसी वस्तुका सन्निवेश करना हैं। जैसे-भवति, गच्छति आदि। आनुपूर्वी है। भाचार
१५ आर्जव सात्त्विक प्रवृत्तियोका माल- ' आत्माके सरल परिणामोको म्बन ग्रहण करना आचार है। आर्जव कहते है। आचारमे जीवनव्यापी उन सभी आवश्यक प्रवृत्तियोका आकलन किया जाता जिन क्रियाओका पालन करना है जिनसे जीवनका सर्वांगीण मुनिके लिए अत्यावश्यक होता है, निर्माण होता है।
उन्हे आवश्यक कहते हैं । आवआचाराग
श्यकके ६ भेद हैं। ग्यारह अगोमे यह पहला अंग मासन है। इसमे मुनि और गृहस्थके सभी
• ध्यान करनेके लिए बैठनेकी प्रकारके आचरणोका वर्णन किया
विशेष प्रक्रियाको आसन कहा जाता है।
जाता है। मार्तध्यान
१०५ आसन-शुद्धि 'इष्टवियोग अनिष्टसयोगादिसे काष्ठ, शिला, भूमि या चटाई
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