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पर अहिंसक वृत्तिपूर्वक आसीन होना आसन शुद्धि है। आसनको सावधानीपूर्वक शुद्ध रखना आसन
शुद्धि है ।
भास्तिक्य
मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
इच्छित क्रिया
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जो क्रिया हमे अभीष्ट होती है उसे इच्छित क्रिया कहते हैं । यह
अनुकूल वातावरणमे प्रकाशित होती है । इन्द्रियगोचर
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लोक-परलोकमे आस्था रखना
आस्तिक्य है ।
आस्रव
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कर्मोके आनेके द्वारको आस्रव कहते हैं । इसके दो भेद है - भाव आस्रव और द्रव्य मास्रव ।
इच्छा
८५
इच्छाशक्ति मनुष्यकी वह मानसिक शक्ति है, जिसके द्वारा वह किसी प्रकारके निश्चयपर पहुँचता है और उस निश्चयपर दृढ़ रहकर उसे कार्यान्वित करता है । सक्षेपमे किसी वस्तुकी चाहको इच्छा कहते हैं । चाह मनुष्य के वातावरणके सम्पर्कसे उत्पन्न होती है उसका लक्ष्य किसी भोगकी प्राप्ति होता है । यह क्रियात्मक मनोवृत्ति है । अप्रकाशित इच्छाएँ वासना कहलाती हैं । मोर प्रकाशित इच्छाभोको इच्छा कहते हैं ।
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३५
जो इन्द्रियोके द्वारा ग्रहण
किया जा सके उसे इन्द्रियगोचर या
इन्द्रियग्राह्य कहते हैं ।
उच्चाटन
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जिन मन्त्रोके द्वारा किसीके मनको अस्थिर, उल्लास रहित एव निरुत्साहित कर पदभ्रष्ट या स्थानभ्रष्ट कर दिया जाये वे मन्त्र उच्चाटन मन्त्र कहलाते हैं ।
उद्दिष्ट
१४८
पदको रखकर संख्याका आन
यन करना उद्दिष्ट है । उत्कर्षण
१३०
कर्मोकी स्थिति और अनुभाग
वन्धका बढ़ना उत्कर्षण है ।
उदय
१३०
समय पाकर कर्मोंका फल देना उदय है ।
उदीरणा
१३०
समयसे पहले ही कर्मो का फल
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