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________________ २३० पर अहिंसक वृत्तिपूर्वक आसीन होना आसन शुद्धि है। आसनको सावधानीपूर्वक शुद्ध रखना आसन शुद्धि है । भास्तिक्य मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन इच्छित क्रिया ७८ जो क्रिया हमे अभीष्ट होती है उसे इच्छित क्रिया कहते हैं । यह अनुकूल वातावरणमे प्रकाशित होती है । इन्द्रियगोचर २९ लोक-परलोकमे आस्था रखना आस्तिक्य है । आस्रव ३० कर्मोके आनेके द्वारको आस्रव कहते हैं । इसके दो भेद है - भाव आस्रव और द्रव्य मास्रव । इच्छा ८५ इच्छाशक्ति मनुष्यकी वह मानसिक शक्ति है, जिसके द्वारा वह किसी प्रकारके निश्चयपर पहुँचता है और उस निश्चयपर दृढ़ रहकर उसे कार्यान्वित करता है । सक्षेपमे किसी वस्तुकी चाहको इच्छा कहते हैं । चाह मनुष्य के वातावरणके सम्पर्कसे उत्पन्न होती है उसका लक्ष्य किसी भोगकी प्राप्ति होता है । यह क्रियात्मक मनोवृत्ति है । अप्रकाशित इच्छाएँ वासना कहलाती हैं । मोर प्रकाशित इच्छाभोको इच्छा कहते हैं । } ३५ जो इन्द्रियोके द्वारा ग्रहण किया जा सके उसे इन्द्रियगोचर या इन्द्रियग्राह्य कहते हैं । उच्चाटन ८८ जिन मन्त्रोके द्वारा किसीके मनको अस्थिर, उल्लास रहित एव निरुत्साहित कर पदभ्रष्ट या स्थानभ्रष्ट कर दिया जाये वे मन्त्र उच्चाटन मन्त्र कहलाते हैं । उद्दिष्ट १४८ पदको रखकर संख्याका आन यन करना उद्दिष्ट है । उत्कर्षण १३० कर्मोकी स्थिति और अनुभाग वन्धका बढ़ना उत्कर्षण है । उदय १३० समय पाकर कर्मोंका फल देना उदय है । उदीरणा १३० समयसे पहले ही कर्मो का फल 7
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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