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परिशिष्ट नं० २
अनुचिन्तनगत पारिभाषिक शब्दकोष
अगुरुलघुत्व गुण
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यह वह गुण है जिसके निमित्त
से द्रव्यका द्रव्यत्व बना रहता है ।
अघातिया कर्म
वाले कर्म |
अचेतन
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आत्म गुणोका घात न करने
८४
अचेतन अनुभूतियां वे हैं जिनकी तात्कालिक चेतना मनुष्यको नही रहती, किन्तु उसके जीवनपर उनका प्रभाव पडता रहता है । भणु पुद्गल के सबसे छोटे टुकड़े या अंशको अणु कहते हैं ।
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अविशय
४०
हैं - अन्तरंग और वहिरंग । अन्तरंग परिग्रह
वे अद्भुत या चमत्कारपूर्ण वातें जो सामान्य व्यक्तियोंमे न पायी जायें, अतिशय कहलाती हैं । अधिकरण
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वस्तुके आधारका नाम अघि
करण है । अधिकरण के दो भेद
४६
आन्तरिक राग, द्वेष, काम,
क्रोधादि विकारोमे ममत्व भाव रखना अन्तरंग परिग्रह है । यह चौदह प्रकारका होता है ।
अन्तरात्मा
३२
शरीर, धन-धान्यादि समस्त परवस्तुओंसे ममत्वबुद्धिरहित होना एवं सच्चिदानन्द स्वरूप आत्माको ही अपना समझना, अन्तरात्मा है । अन्तराय कर्म
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सुख ज्ञान एव ऐश्वयं प्राप्तिके साधनोंमे विघ्न उत्पन्न करनेवाला कर्म अन्तराय कर्म कहलाता है । अनानुपूर्वी
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पद व्यतिक्रम से णमोकार मन्त्र
का पाठ करना या जाप करना
अनानुपूर्वी है ।
अपकर्षण
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१३०
कर्मोंके स्थितिबन्ध एवं अनु