________________
मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २१९ हो जाती है । मनुष्य ही नही, पशु-पक्षी भी किस प्रकार अपने विकारोंके त्याग और जीवनके नियन्त्रणसे अपने आत्माको सस्कृत कर चुके है । सस्कृतिका एक स्पष्ट मानचित्र अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुका नाम स्मरण करते ही सामने प्रस्तुत हो जाता है। इस सत्यसे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि व्यक्तिकी अन्तरग और बहिरग रूमाकृति ही उसका आदर्श है, यह आदर्श अन्य व्यक्तियोके लिए जितना उपयोगी एव प्रभावोत्पादक हो सकता है, उस व्यक्तिकी सस्कृतिको उतना ही प्रभावित कर सकता है। पचपरमेष्ठीद्वारा स्वावलम्बन और स्वातन्त्र्यके भाव जागृत होते हैं। कपिनेकी भावना, जिसके कारण व्यक्ति परमुखापेक्षी रहता है और अपने उद्धार एव कल्याणके लिए अन्यकी सहायताकी अपेक्षा करता रहता है, जैन सस्कृतिके विपरीत है । इस महामन्यका आदर्श स्वयं ही अपने पुरुषार्थ-द्वारा साधु अवस्था धारण कर सिद्ध अवस्था प्राप्त करनेकी ओर सकेत करता है। अतएव णमो. कारमन्त्र जैन सस्कृतिका सच्चा और स्पष्ट मानचित्र प्रस्तुत कर देता है।
णमोकारमन्त्र प्रत्येक व्यक्तिको सभी प्रकारसे सुखदायी है । इस महामन्त्र-द्वारा व्यक्तिको तीनो प्रकारके कर्तव्यो - आत्माके प्रति, दूसरोके प्रति
___ और शुद्धात्माओंके प्रति-का परिज्ञान हो जाता उपसंहार
है। आत्माके प्रति किये जानेवाले कर्तव्योंमे नैतिक कर्तव्य, सौन्दर्यविषयक कर्तव्य, बौद्धिक कर्तव्य, आर्थिक कर्तव्य और भौतिक कर्तव्य परिगणित है। इन समस्त कर्तव्योपर विचार करनेसे प्रतीत होता है कि इस महामन्त्रके आदर्शसे हमे अपनी प्रवृत्तियो, वासनाओ, इच्छाओ और इन्द्रिय-वेगोपर नियन्त्रण करनेकी प्रेरणा मिलती है । आत्मसयम और आत्मसम्मानको भावना जागृत होती है । दूसरोंके प्रति सम्पन्न किये जानेवाले कर्तव्योमे कुटुम्बके प्रति, समाजके प्रति, देशके प्रति, नगरके प्रति, मनुष्योंके प्रति, पशुओके प्रति और पेड़-पौधोके प्रति कर्तव्योका समावेश होता है । दूसरोके प्रति कर्तव्य सम्पादन करनेमे तीन