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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
वाचनिक प्रभाव द्वारा इस ससार-चक्र से छूट जानेका उपाय बतलाते हैं । अतएव णमोकार मन्त्र जैन संस्कृतिका अन्तरग रूप भावशुद्धि - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्आचरण आदिके साथ है । इस मन्त्रके आदर्शसे तप और त्यागके मार्गपर वढने की प्रेरणा, अहिंसा और अपरिग्रहको आचरणमे उतारने की शिक्षा, विश्वबन्धुत्व और आत्मकल्याणकी कामना उत्पन्न होती है | इस महामन्त्र व्यक्तिकी अपेक्षा गुणोको महत्ता दी गयी है । अतः यह रत्नत्रयरूप संस्कृतिकी प्राप्ति के लिए साधकको आगे बढाता है । उसके सामने पंचपरमेष्ठियोका आचरण प्रस्तुत करता है, जिससे कोई भी व्यक्ति आत्माको संस्कृत कर सकता है । आत्माका सच्चा सस्कार त्यागद्वारा ही होता है, इससे राग-द्वेषोका परिमार्जन होता है और संयमकी प्रवृत्ति भी प्राप्त होती है । अन्तरग आत्माको रत्नत्रयके द्वारा ही सजाया जाता है, इसके बिना आत्माका संस्कार कभी भी सम्भव नही । णमोकार - मन्त्रका आदर्श मरूनी, अकर्मा, अभोक्ता, चैतन्यमय, ज्ञानादि परिणामोंका कर्ता और भोक्ताको अनुभूतिमे लाना है। जिस प्रशम गुण- कषायभावसे आत्मामें परमानन्द आया, वह भी इसीके आदर्शसे मिलता है । अत. जैन संस्कृतिका वास्तविक आदर्श इस महान् मन्त्र द्वारा ही प्राप्त होता है ।
बाह्य जैन संस्कृति सामाजिक एव पारिवारिक विकास, उपासनाविधान, साहित्य, ललितकलाएँ, रहन-सहन, खान-पान आदि रूपये है | इन वाह्य जैन संस्कृति के अगोके साथ भी णमोकारमन्त्रका सम्बन्ध है । उक्त संस्कृतिके स्थूल अवयव भी इसके द्वारा अनुप्राणित हैं । निष्कर्ष यह है कि इस महामन्त्रके आदर्श मूल प्रवृत्तियो, वासनामी और अनुभूतियोको नियन्त्रित करनेमे समर्थ हैं। नैतिक जीवन - बुद्धि-द्वारा नियन्त्रित इन्द्रियपरता इस आदर्शका फल है । यतएव निवृत्ति प्रधान जैन संस्कृतिकी प्राप्ति इस महामन्त्र द्वारा होती है । अतः णमोकार मन्त्रका आदर्श, जिसके अनुकरणपर जीवन के आदर्शका निर्माण किया जाता है, त्याग और पूर्ण अहिंसकमय है । इस मन्त्र से जैन संस्कृतिकी सारी रूप-रेखा सामने प्रस्तुत