SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २०६ उन्हें बडी भारी श्रद्धा है । वह बिच्छू, ततैया, हड्डा मादिके विषको इस मन्त्र द्वारा ही उतार देते हैं । उसी मिलके कई व्यक्तियोंने बतलाया कि विच्छू का जहर इन्होने कई बार णमोकार मन्त्र द्वारा उतारा है । यो तो वह भगवान के भक्त भी हैं; प्रतिदिन भगवान्की नियमित रूपसे पूजा करते हैं । किन्तु णमोकार मन्त्रपर उनका बड़ा भारी विश्वास है । } अनिष्ट निवारक प्राचीन और आधुनिक अनेक उदाहरण इस प्रकारके विद्यमान हैं, जिनके आधारपर यह कहा जा सकता है कि णमोकार मन्त्रकी आराधना से सभी प्रकार के अरिष्ट दूर हो जाते हैं और सभी इष्ट-साधक और अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं । इस मन्त्रके जापसे णमोकार मन्त्र पुत्रार्थी पुत्र, धनार्थी धन और कीर्ति- अर्थी कीर्ति प्राप्त करते हैं । यह समस्त प्रकारकी ग्रहवाघाओको तथा भूत-पिशाचादि व्यन्तरोंकी पीडाओं को दूर करनेवाला है । 'मन्त्रशास्त्र और णमोकार मन्त्र' शीर्षकमे पहले कहा जा चुका है कि इसी महासमुद्रसे समस्त मन्त्रोकी उत्पत्ति हुई है तथा उन मन्त्रोंके जाप - द्वारा किन-किन अभीष्ट कार्योंको सिद्ध किया जा सकता है । जब इस महामन्त्रके ध्यानसे मात्मा निर्वाणपद प्राप्त कर सकता है, तब तुच्छ सासारिक कार्योंकी क्या गणना ? ये तो आनुषंगिक रूपसे अपने-आप सिद्ध हो जाते हैं । 'तिलोयपण्णत्ति' के प्रथम अधिकारमें पचपरमेष्ठीके नमस्कारको समस्त विघ्न - वाघाओको दूर करनेवाला, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, राग-द्वेपादि भावकर्म एवं शरीरादि नौ कर्मोंको नाश करनेवाला बताया है । समस्त पापका नाशक होने के कारण यह दृष्टसाधक और अनिष्टविनाशक है । क्योकि तीव्र पापोदयसे ही कार्यमे विघ्न उत्पन्न होते हैं तथा कार्य सिद्ध नही होता है । अत पापविनाशक मगलवाक्य होनेसे ही यह इष्टसाधक है । बताया गया है अन्तरदन्वमलं जीवपदेसे णिबद्धमिदि हो । भावमलं णादन्व भणाण दंसणादि परिणामो ॥ •
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy