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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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पास नहीं रहता था, आगे-आगे दूर-दूर ही चल रहा था कि आप लोग मेरे ऊपर अविश्वास मत कीजिए। मैं आपका सेवक और हितैषी हूँ। अत यह लोगोको निश्चय हो गया कि णमोकार मन्त्रके प्रभावसे किसी यक्षने इस प्रकारका कार्य किया है । यक्षके लिए इस प्रकारका कार्य करना असम्भव नही है ।
पूज्य भगतजी सा० से यह भी मालूम हुआ कि णमोकार मन्त्रकी आराधनासे कई अवसरोपर उन्होने चमत्कारपूर्ण कार्य सिद्ध किये हैं । उनके सम्पर्कमे आनेवाले कई जैनेतरोने इस मन्त्र की साधनासे अपनी मनोकामनाओको सिद्ध किया है। मैंने स्वय उनके एक सिन्धी भक्तको देखा है जो णमोकार मन्त्रका श्रद्धानी है ।
पूज्य बाबा भागीरथ वर्णी सन् १९३७-३८ मे श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीमे पधारे हुए थे। बाबाजीको णमोकार मन्त्रपर वडी भारी श्रद्धा थी। श्रीछेदीलाल जीके मन्दिरमे बाबाजी रहते थे । जाडेके दिन थे, बाबाजी पूपमे बैठकर छतके ऊपर स्वाध्याय करते रहते थे । ( क लगूर कई दिनो तक वहां माता रहा । वावाजी उसे बगलमे बैठाकर णमोकार मन्त्र सुनाते रहे । यह लगूर भी आधा घण्टे तक बाबाजीके पास बैठता रहा । यह क्रम दस-पांच दिन तक चला। लडकोने वावाजीसे कहा-"महाराज, यह चचल जातिका प्राणी है, इसका क्या विश्वाम, यह आपको किसी दिन काट लेगा।" पर बाबाजी कहते रहे "भय्या, ये तिर्यंच जातिके प्राणी णमोकार मन्त्रके लिए लालायित हैं, ये अपना कल्याण करना चाहते हैं । हमे इनका उपकार करना है।" एक दिन प्रतिदिनवाला लगूर न आकर दूसरा आया और उसने बाबाजीको काट लिया, इसपर भी वावाजी उसे णमोकार मन्त्र सुनाते रहे, पर वह उन्हे काटकर भाग गया । पूज्य बाबाजीको इस महामन्त्रपर वडी भारी श्रद्धा थी और वह इसका उपदेश सभीको देते थे।
एक सज्जन हथुआ मिलमे कार्य करते हैं, उनका नाम ललितप्रसादजी है। वह होम्योपैथिक औषधका वितरण भी करते हैं। णमोकारमन्यपर