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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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अहवा बहुभेयगयंणाणावरणादिदन्वभावमलदेहा। ताई गालेह पुढ जदो तदो मंगलं भणिदं ॥ अहवा मग सुक्खं लादिहु गेण्हेदि मंगलं तम्हा । एदेण कन्जसिद्धिं मंगइ गच्छेदि गथकत्तारो ॥ पावं मलंति अण्णइ उवचारसरूवएण जीवाणं ।
तं मालेदि विणास जेदि ति भणति मंगलं केइ ॥ अर्थात् - ज्ञानावरणादि कर्मरूपी पापरज जीवोके प्रदेशोके साथ सम्बद्ध होने के कारण आभ्यन्तर द्रव्यमल हैं तथा अज्ञान, अदर्शन आदि जीवके परिणाम भावमल हैं। अथवा ज्ञानावरणादि द्रव्यमलके और इस द्रव्यमलसे उत्पन्न परिणाम स्वरूप भावमलके अनेक भेद हैं। इन्हें यह णमोकार मन्त्र गलाता है, नष्ट करता है, इसलिए इसे मगल कहा गया है अथवा यह मंग अर्थात् सुखको लाता है, इसलिए इसे मगल कहा जाता है । इष्ट-साधक और अनिष्ट-विनाशक होनेके कारण समस्त कार्योंका आरम्भ इस मन्त्रके मगल पाठके अनन्तर ही किया जाता है। अत यह श्रेष्ठ मगल है। जीवोके पापको उपचारसे मल कहा जाता है, यह णमोकार मन्त्र इस पापका नाश करता है, जिससे अनिष्ट बाधाओका विनाश होता है और इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं।
यह णमोकार मन्त्र समस्त हितोको सिद्ध करनेवाला है इस कारण इसे सर्वोत्कृष्ट भाव-मगल कहा गया है। 'मायते साध्यते हितमनेनेति मंगलम्' इस व्युत्पत्तिके अनुमार इसके द्वारा समस्त अभीष्ट कार्योंकी सिद्धि होती है। इसमे इस प्रकारकी शक्ति वर्तमान है, जिसमें इसके स्मरणसे आत्मिक गुणोकी उपलब्धि सहजमे हो जाती है। यह मन्त्र रत्नत्रयधर्म तथा उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दस धर्मोको आत्मामे उत्पन्न करता है अत. "मग धर्म लातीति मङ्गलम्" यह व्युत्पत्ति की जाती है । ___ णमोकार मन्त्रका भावपूर्वक उच्चारण संसारके चक्रको दूर करनेवाला है, तथा संवर और निर्जराके द्वारा आत्मस्वरूपको प्राप्त करनेवाला है।