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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
वर्तीसे कहा - "यदि आप अपने प्राणोकी रक्षा चाहते हैं तो पानीमे णमोकार मन्त्रको लिखकर उसे पैरके अँगूठेसे मिटा दें। मैं इसी शर्तके ऊपर आपको जीवित छोड सकता हूँ । अन्यथा आपका मरण निश्चित है ।" प्राणरक्षा के लिए मनुष्यको भले-बुरेका विचार नही रहता, यही दशा चक्रवर्ती की हुई । व्यन्तरदेव के कथनानुसार उसने णमोकार मन्त्रको लिखकर पैर के अंगूठेसे मिटा दिया । उनके उक्त क्रिया सम्पन्न करते ही, व्यन्तरने उन्हे मारकर समुद्रमे फेंक दिया । क्योकि इस कृत्यके पूर्व वह णमोकार मन्त्र के श्रद्धानीको मारनेका साहस नही कर सकता था । यतः उस समय जिन शासनदेव उस व्यन्तर के इस अन्यायको रोक सकते थे; किन्तु णमोकार मन्त्रके मिटा देनेसे व्यन्तरदेवने समझ लिया कि यह धर्मद्वेषी है, भगवान्का भक्त नही । श्रद्धा या अटुट विश्वास इसमे नही है । अत. उस व्यन्तरने उसे मार डाला । णमोकार मन्त्रके अपमानके कारण उसे सप्तम नरककी प्राति हुई । जो व्यक्ति णमोकार मन्त्रके दृढ ज्ञानी हैं, उनकी आत्मामे इतनी अधिक शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे भूत, प्रेत, पिशाच आदि उनका वाल भी बांका नही कर पाते। आत्मस्वरूप इस मन्त्रका श्रद्धान ससारसे पार उतारनेवाला है तथा सम्यग्दर्शन की उत्पत्तिका प्रधान हेतु है । शान्ति, सुख और समताका कारण यही महामन्त्र है ।
श्वेताम्वर धर्मकथासाहित्यमे भी इस महामन्त्र के सम्वन्ध मे अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं । कथा रत्नकोपमे श्रीदेव नृपतिके कथानकमे इस महामन्त्रकी महत्ता बतलायी गयी है । णमोकार मन्त्रके एक अक्षर या एक पदके उच्चारणमात्रसे जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं । जिस प्रकार सूर्यके उदय होनेसे अन्धकार नष्ट हो जाता है, कमलश्री वृद्धिगत होने लगती है, उसी प्रकार इस महामन्त्रकी श्राराधनासे पाप तिमिर लुप्त हो जाते हैं और पुण्यश्री बढ़ती है । मनुष्योकी तो बात ही क्या तियंच, भीलभीलनी, नीच चाण्डाल आदि इस महामन्त्रके प्रभावसे मरकर स्वर्गमें देव हुए और वहाँसे चयकर मनुष्यकी पर्याय प्राप्त होकर निर्वाण प्राप्त किया
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