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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १९९ है। स्त्रीलिंगका छेद और समाधिमरणकी सफलता इसी मन्त्रकी धारणापर निर्भर है।
कथासाहित्यमे एक भील-भीलनीकी कथा आयी है, जिसमे बताया गया है कि पुष्करावर्त द्वीपके भरत क्षेत्रमे सिद्धकूट नामका नगर है। उसमे एक दिन शान्त तपस्वी वीतरागी सुव्रत नामके आचार्य पधारे। वर्षाऋतु आरम्भ हो जानेके कारण चातुर्मास उन्होने वही ग्रहण किया। एक दिन मुनिराज ध्यानस्थ थे कि भील-भीलनी दम्पति वहां आये। मुनिराजका दर्शन करते ही उनका चिरसचित पाप नष्ट हो गया, उनके मनमे अपूर्व प्रसन्नता हुई और दोनो मुनिराजका धर्मोपदेश सुननेके लिए वहीपर ठहर गये । जब मुनिराजका ध्यान टूटा तो उन्होंने भील-भीलनीको नमस्कार करते हुए देखा । महाराजने धर्मबुद्धिको आशीर्वाद दिया । आशीर्वाद प्राप्त कर वे दोनो अत्यन्त आह्लादित हुए और हाथ जोड़कर कहने लगे - प्रभो । हमे कुछ धर्मोपदेश दीजिए। मुनिराजने णमोकार मन्त्र उनको सिखलाया, उन दोनोने भक्ति-भावपूर्वक णमोकार मन्त्रका जाप आरम्भ किया। श्रद्धापूर्वक सर्वदा त्रिकाल इस महामन्त्रका जाप करने लगे। भीलने मृत्युके समय भी भक्ति-भावपूर्वक इस महामन्त्रकी आराधना की, जिससे वह मरकर राजपुत्र हुआ। भीलनीने भी सुगति पायी।
आगे बतलाया गया है कि, जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमे मणिमन्दिर नामका नगर था । उस नगरके निवासी अत्यन्त धर्मात्मा, दानपरायण, गुणग्राही और सत्पुरुष थे । इस नगरके राजाका नाम मृगाक था और इसकी रानीका नाम विजया। इन्ही दम्पतिका पुत्र णमोकार मन्त्रके प्रभावसे उस भीलका जीव हुआ। इस भवमे इसका नाम राजसिंह रखा गया। बडे होनेपर राजसिंह मन्त्री-पुत्र के साथ भ्रमणके लिए गया। रास्तेमे थककर एक वृक्षकी छायामे विश्राम करने लगा। इतनेमे एक पथिक उसी मार्ग से आया और राजपुत्रके पास आकर विश्राम करने लगा। बात-चीतके सिलसिले में उसने बतलाया कि पद्मपुरमे पद्म नामक राजा रहता है, इसकी रत्नावती