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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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मे जितने अरिहन्त, केवलीजिन, तीर्थंकर, सिद्ध, धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, धर्म नायक, उपाध्याय, साधुकी भक्ति करते हुए इस मन्त्रके २७ श्वासोच्छ्वासोमे ९जाप करने चाहिए। प्रतिक्रमण दण्डक आरम्भमे ही 'णमो अरिहंताणं" आदि णमोकार मन्त्र के साथ "णमो जिणाणं, णमो ओहिजिणाणं, णमो परमोहिजिणाण, णमो सम्बोहिजिणाणं, णमो अणतोहिजिणाण, णमो मोहबुद्धीणं, णमो बीजवुद्धीण, णमो पादाणुमारीणं, णमो संभिण्णसोदाराणं, णमो सयबुद्धाण, णमो पत्तेयबुद्धाण, णमो वोहियबुद्धाणं" भादि जिनेन्द्रोको नमस्कार करते हुए प्रतिक्रमणके मध्यमे अनेक बार णमोकार मन्त्रका ध्यान किया गया है । प्रत्येक महाव्रतको भावनाको द्ध करनेके लिए भी णमोकार मन्त्र का जाप करना आवश्यक समझा जाता है । अतः "प्रथमं महाव्रत सर्वेषां व्रतधारिणां सम्यक्त्व पूर्वकं दृढव्रतं सुतं समारूढं ते मे भवतु " कहकर " णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण” आदि मन्त्रका २७ श्वासोच्छ्वासोंमे नौ वार जाप किया जाता है । प्रत्येक महाव्रतकी भावनाके पश्चात् यह क्रिया करनी पडती है । अतिक्रमण मे आगे बढनेपर "अचारं पह्निकमामि निंदामि गरहांदि अप्पाणं वोस्सराभि जाव अरहंताणं मयचंताण णमोक्कारं करेमि पज्जुवासं करेमि ताव कार्यं पावक्म्स दुच्चरिणं वोस्सरामि । णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्वसाहूणं" रूपसे कायोत्सर्ग करता है । वार्षिक प्रतिक्रमण क्रियामे तो गमोकार मन्त्रके जापकी अनेक वार आवश्यकता होती है। मुनिराजकी कोई भी प्रतिक्रमणक्रिया इस णमोकार मन्त्र के स्मरणके बिना सम्भव नही है । २७ श्वासोच्छ्वासोमे इस महामन्त्रका ९ बार उच्चारण किया जाता है ।
इसी प्रकार प्रात कालीन देववन्दनाके अनन्तर मुनिराज सिद्ध, शाल, तीर्थंकर, निर्वाण, चैत्य और आचार्य आदि भक्तियोका पाठ करते हैं । प्रत्येक भक्तिके अन्त मे दण्डक - णमोकार मन्त्रका नौ बार जाप करते हैं । यह भक्तिपाठ ४८ मिनिट तक प्रातःकालमे किया जाता है । पश्चात्