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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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नयात्मक वस्तु उत्पादव्यय- ध्रौव्यात्मक हुआ करती है और उत्पाद-व्यय श्रीव्यात्मक ही वस्तु नित्यानित्य कही जाती है ।
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निक्षेप - अर्थ-विस्तारको निक्षेप कहते हैं । निक्षेप - विस्तार में णमोकार मन्त्र के अर्थका विस्तार किया जाता है। निक्षेपके चार भेद हैं - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । णमोकार मन्त्रका भी नाम नमस्कार, स्थापना नमस्कार, द्रव्य नमस्कार और भाव नमस्कार इन चार अर्थोंमें प्रयोग होता है | 'नमः' कहकर अक्षरोका उच्चारण करना नाम नमस्कार और मूर्ति, चित्र आदिमें पंचपरमेष्ठोको स्थापना कर नमस्कार करना स्थापना नमस्कार है । द्रव्य नमस्कारके दो भेद है आगम द्रव्य नमस्कार और नोआगम द्रव्य नमस्कार | उपयोगरहित 'नमः' इस शब्दका प्रयोग करना आगम नमस्कार और उपयोगसहित नमस्कार करना नोभागम नमस्कार होता है । इसके तीन भेद हैं - ज्ञायक, भाव्य और तद्व्यतिरिक्त | भाव नमस्कार के भी दो भेद हैं - आगमभाव नमस्कार और नोआगमभाव नमस्कार । णमोकार मन्त्रका अर्थज्ञाता, उपयोगवान् आत्मा आगमभाव नमस्कार और उपयोगसहित ' णमो अरिहंताणं' इन वचनोंका उच्चारण तथा हाथ, पाँव, मस्तक आदिको नमस्कार-सम्बन्धी क्रियाको करना नोमागमभाव नमस्कार है । इस प्रकार निक्षेप द्वारा णमोकार मन्त्र के अर्थका आशय हृदयगम किया जाता है ।
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पद-द्वार - "पद्यते गम्यतेऽर्थोऽनेनेति पदम् " अर्थात् जिसके द्वारा अर्थबोध हो, उसे पद कहते हैं । इसके पांच भेद हैं - नामिक, नैपातिक, ओपaगिक, आख्यातिक और मिश्र । सज्ञावाचक प्रत्ययोंसे सिद्ध होनेवाले शब्द नामिक कहे जाते हैं, जैसे अश्व, घट आदि । अव्ययवाची शब्द नैपातिक कहे जाते हैं, जैसे खलु ननु च आदि । उपसर्गवाचक प्रत्ययों को शब्दोंके पहले जोड़ देनेसे जो नवीन शब्द बनते हैं, वे औपसगिक कहे जाते
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१. विशेषके लिए देखें, धवला टीका, प्रथम पुस्तक, पू० ८-६० ।