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मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन १२३ है । जैसे परिगच्छति, परिधावति । क्रियावाचक धातुओसे निष्पन्न होनेवाले शब्द आख्यातिक कहलाते हैं, जैसे धावति, गच्छति आदि । कृदन्त - कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्ययोसे निष्पन्न शब्द मिश्र कहे जाते हैं, जैसे नायक , पावक , जैन , सयतः आदि । पद-द्वारका प्रयोजन णमोकार मन्त्रमें प्रयुक्त शब्दोका वर्गीकरण कर उनके अर्थका अवधारण करना है-शब्दोकी निष्पत्तिको ध्यानमें रखकर नपातिक प्रभृति शब्दोका अर्थ एव उनका रहस्य अवगत करना ही इस द्वारका उद्देश्य है। कहा गया है - "निपतत्यहंदादिपदानामादिपर्यन्तयोरिति निपातः, निपातादागतं तेन वा निवृत्तं स एव वा स्वायिकप्रत्ययविधान्नैपातिकम् - नम इति पदम्" । तात्पर्य यह है कि णमोकार मन्त्रके पदोकी प्रकृति और प्रत्ययकी दृष्टिसे व्याख्या करना पदद्वार है । इस द्वारकी उपयोगिता शब्दोकी शक्तिको अवगत करने में है। शब्दोमें नैसर्गिक शक्ति पायी जाती है और इस शक्तिका बोध इसी द्वारके द्वारा सम्भव है। जबतक शब्दोंका व्याकरणके प्रकृति-प्रत्ययकी दृष्टिसे वर्गीकरण नहीं किया जाता है, तबतक यथार्थ रूपमें शन्द-शक्तिका बोध नहीं हो सकता। णमोकार मन्त्रके समस्त पद कितने शक्तिशाली हैं तथा पृथक्-पृथक् पदोमें कितनी शक्ति है और इन पदोकी शक्ति का उपयोग आत्म कल्याणके लिए किस प्रकार किया जा सकता है ? आत्माको कर्मावरणके कारण अवरुद्ध शक्ति किस प्रकार इस महामन्त्रकी शक्तिके द्वारा प्रस्फुटित हो सकती है ? मादि बातोका विचार इस पद-द्वारमें होता है। यह केवल शब्दोकी रचना या उस रचना-द्वारा सम्पन्न व्युत्पत्तिका ही प्रदर्शन नहीं करता, बल्कि इस मन्त्रकी पद, अक्षर और ध्वनि शक्तिका विश्लेषण करता है। __पदार्थद्वार - द्रव्य और भावपूर्वक णमोकार मन्त्रके पदोको व्याख्या करना पदार्थद्वार है। "इह नमोऽहंस्य , इत्यादिषु यत् नमः इति पदं तस्य नम इति पदस्याथे. पदार्थः, स च पूजालक्षण., स च क ? इत्याह दव्यसंकोचनं भावसंकोचनं च । वन द्रव्यसकोचन करशिरःपदादि