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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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अपेक्षा यह मन्त्र नित्य, अनित्य दोनो प्रकारका है । ऋजुसूत्र नयको अपेक्षा इस महामन्त्रको उत्पत्तिमें वचन उपदेश और लब्धि ज्ञानावरणीय भर मोर्यान्तरायकर्मका क्षयोपशम विशेष कारण है तथा शब्दादि नयकी अपेक्षा केवललव्धि हो कारण है । इन पर्यायार्थिक नयोको अपेक्षासे यह णमोकार - मन्त्र उत्पादव्ययात्मक है । कहा भी गया है -
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"आद्यनैगम सत्तामात्रग्राडी, ततस्तस्याद्यनैगमस्य मतेन सर्ववस्तु नाभूतं नाविद्यमानं किंतु सर्वदैव सर्व सदेव । अतः भयं नैगमस्य, स नमस्कारो नित्य एव वस्तुत्वात् नभोवत् ।"
शब्द मोर अर्थकी अपेक्षासे भी यह णमोकारमन्त्र नित्यानित्यात्मक है । शब्द नित्य और अनित्य दोनो प्रकार के होते हैं । अतः सर्वथा शब्दोको नित्य माना जाये तो सभी स्थानोपर शब्दोंके श्रवणका प्रसंग मावेगा और अनित्य माना जाये तो नित्य सुमेरु, चन्द्र, सूर्य आदिका संकेत शब्दसे नहीं हो सकेगा । अत पौद्गलिक शब्द वर्गणाएँ नित्य हैं यया व्यवहार में आनेवाले शब्द अनित्य हैं | शब्दोंके नित्यानित्यात्मक होनेसे णमोकार मन्त्र भी नित्यानित्यात्मक है | अर्थको दृष्टिसे यह नित्य है, क्योंकि इसका अर्थ वस्तुरूप है और वस्तु अनादिकालसे अपने स्वरूपमें अवस्थित चली आ रही है और अनन्तकाल तक अवस्थित चली जायेगी | सामान्य विशेषात्मक वस्तुका ग्रहण और विवेचन नेय तथा प्रमाणके द्वारा ही हो सकता है । प्रमाण
१ अनभिनिवृत्तार्थसंकल्पमात्रग्राही नैगमः ।
स्वजात्यविरोधेनैकध्यमुपनीय
पर्यायानामान्त मेदानविशेषेण समस्तग्रहणात्सग्रहः । संग्रहनया क्षिप्तानामर्थान विधिपूर्वकमवहरण व्यवहारः । ऋजुं प्रगुणं सूत्रयति तन्त्रयति इति ऋजुसूत्रः । लिङ्ग राख्या साधना द्विव्यभिचारनिवृत्तिपरः शब्दनयः । नानार्थसमभिरोहणात् समभिरूढः । येनात्मना भूतस्तेनैवाध्यवसाययतीत्येवभूत. । शानेन भून. परिणतस्तेनैवाध्यवसाययति ।
अथवा येनात्मना येन
- सर्वार्थसिद्धि, पृ० ८४-८७