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ग परिशिष्ट द्विवेदी जी क चरित्र पार उनकी शैली के अध्ययन की दृष्टि स यह रचना विशेष महत्त्वपूर्ण है । स्थान स्थान पर द्विवेदी जी ने अपने क्रोध और उग्रता की अभिव्यक्ति की है। इस पुस्तक में उनकी वक्ततात्मक और व्यंग्यात्मक शैलिया अपनी प्रोजस्विता की सीमा पर पहुंच गई हैं। 'मापा और भापासुधार' अध्याय में व्याख्यात इन शैलियों की सभी विशिष्टताएं इसमें व्याप्त हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ का अन्तिम अवच्छेद पृष्ठ ७१ पर उद्धृत किया जा चुका है।