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। ८६ और रोगाधिकरण के चार परिच्छेदा म अनिच्छित वीर्यपात, मूत्राघात, उपदश एव नपस कत्व का विवचन किया गया है तरुणों के लिए जातव्य सभी बाता का बोधगम्य भाषा म प्रतिपादन हुआ है।
संस्कृत ग्रन्था में स्त्रियों की वयःसन्धि पर तो बहुत कुछ है परन्तु पुरुषों पर अत्यल्प । प्रस्तुत ग्रन्थ मे द्विवेदी जी ने पुरुपो के वर्णन मे नैषधचरित', 'सहृदयानन्द', विक्रमाकदेवचरित' श्रादि काव्यों से भी पर्याप्त उदाहरण दिए है। वात्स्यायन, डा० गंगादीन, डा० धन्वतरि श्रादि भारतीय एवं डा० फाउलर, डा० मिक्स्ट, राबर्ट डेल प्रोयन अादि पश्चिमीय विद्वानो के मतों को भी यथास्थान उद्धृत किया है । पूरे ग्रन्थ में श्राद्योपान्त ही अश्लीलता का नाम नहीं है। इन ग्रन्थ की भाषा और शैली द्विवेदी नी की प्रारम्भिक रचनायो को-सी है।
२.सोहागरात. अप्रकाशित 'सोहागरात' द्विवेदी जी की विशेष उल्लेखनीय अनूदित कृति है। यह अंगरेज कवि बाइरन की 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद है। "पहले ही पहल पति के घर आई हुई एक बाला स्त्री का उसकी मैत्रिणी को पत्र है ।" इस पचास पदो के पत्र में नव-विवाहिता शशी ने अपनी अविवाहिता सम्वी कलावती के प्रति सोहागरात में की गई छः बार की गति का प्रस्तावनासहित आद्योपान्त सविस्तार वर्णन किया है। यह वही 'सोहागरात' है जिसकी चर्चा द्विवेदी जी ने अभिनन्दन के समय अात्मनिवेदन में की थी और जिसको लेकर कृष्णकान्त मालवीय ने निरर्थक और अनुचित विवाद उठाया था। यह रचना इतनी अश्लील है कि इसके उद्धरण देने में अत्यन्त संकोच हो रहा है। और ऐसा करना द्विवेदी जी के प्रति अन्याय होगा । यह तो सच्चरित्र, मंयमशील और श्रादर्श द्विवेदी जी की कृति ही नहीं प्रतीत होती । पुस्तकान्त मे द्विवेदी जी ने लिन्बा है--
देखो दो वेदो का पडनेवाला भी यह कहता है-- मुग्व भोगो, दुनिया में आकर कौन बहुत दिन रहता है ?
३ कौटिल्यकुठार, साहित्यिक संस्मरण के सन्दर्भ में प्रस्तुत ग्रन्थ की चर्चा भी हो चुकी है। इस ग्रंथ के प्रारम्भ में राय देवी प्रसाद द्वारा अंगरेजी में लिखी हुई एक संक्षिप्त भूमिका है । शेष पुस्तक तीन खंडो में विभक्त है
क सभा की सभ्यता ख वतन्य