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। ८८ } नीन अप्रकाशत पुस्तकें
१. तन्णोपदेश. हिन्दी मे अभी तक कोई ऐसी पुस्तक नही लिखी गई थी जो तरुणों को स्वास्थ्य, संयम और ब्रह्मचर्यपालन का मार्ग दिखाकर उन्हें अनिष्ट कृत्यों से बचा सके । १८६४ ई० मे 'तरुणोपदेश' की रचना करके द्विवेदी जी ने इम अभाव की सुन्दर पृति की । परन्तु 'रसीली' और 'अश्लील' समझी जाने के कारण यह पुस्तक छपी नहीं । २१० पृष्ठो की हस्तलिग्वित पुस्तक ४ अधिकरणों में विभाजित है । सामान्याधिकरण के ७ परिच्छेदो में तारुण्य, पुरुषों में क्या क्या स्त्रियों को प्रिय होता है, विवाहकाल, दाम्पत्यसंगम, इच्छानुकुल पुत्र अथवा कन्योत्पादन, अपत्यप्रतिबन्ध और सन्तान न होने के कारण, वीर्याधिकरण के तीन परिच्छेदा में वीर्यवर्णन, ब्रह्मचर्य की हानियाँ और अतिप्रमंग की हानिया, अनिष्ट विदाधिकरण के चार परिच्छेदो म निषिद्ध मेंथुन, हस्तमेथुन, वेश्यागमन-निषेध तथा मद्यप्राशन ४६ रसज्ञरजन
४७ कालिदास ४८ वैचित्र्य-चित्रण
४६ विज्ञान-वार्ता ५० चरितचित्रण
५१ विज्ञ-विनोद ५२ ममालोचना-समुच्चय
५३ वाग्विालास ५४ माहित्य-सन्दर्भ
५५ वनिता-विलास ५६ सुकुवि-संकीर्तन
५७ प्राचीन पंडित और कवि ५८ सकला
५६ विचार-विमर्श ६० पुरातन्व-प्रमंग
६१ माहित्याला ६२ लेग्वाजलि
६३ साहित्य-सीकर ६४ दृश्य-दर्शन
६५ अवध के किसानों की बरबादी ६६ वक्तृत्व कला
६७ अात्म-निवेदन ६८ वेणीमहारनाटक
६६.७० स्पेन्सर की ज्ञेय और अज्ञेय मीमासायें ___ इस सूची के भी कुछ दोष समालोच्य हैं । लेखक ने द्विवेदी जी की किसी भी अप काशित रचना का उल्लेख नहीं किया है । द्विवेदी जी की अनेक रचनाए छोड दी गई हैं । कहीं कहो रचना का नाम भी गलत दिया गया है, यथा 'वक्त त्वकला' और 'कालिदाम' इन दोनों के मुखपृष्ठ पर क्रमशः 'भाषण' और 'कालिदास और उनकी कविता' नाम दिए, हुए हैं । स्पेंसर की ज्ञेय प्रौर अज्ञेय मीमासाओ के अनुवादक द्विवेदी जी नहीं है। उनके लेखक लाला कन्नोमल हैं।
इन दो सूचियो के अतिरिक्त काशी नागरी प्रचारिणी मभा, 'रूपाम', 'साहित्यसन्देश' आदि में अनेक स्थलों पर द्विवेदी जी की रचनाओं की सूची दी गई है किन्तु वे सभी मर्वथा अपूर्ण और अनालंय हैं । इन अपुर्ण मूचियों ने भी पूर्ण सूची प्रस्तुत करने में चन । की है