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५ का यमनूषा १०३ ई० १८६७ ४० मे १६०२ इ. तक रचित मस्कत और हिन्दी की
मौलिक फुटकल कविताश्रा का सम्रह । ६. कान्यकुब्ज-अबला-विलाप-१६०७ ई०, कान्यकुन्ज-ममाज की विवाह-मम्बन्धी कुप्रथाओं
पर आक्षेप । ७. सुमन-~-१६२३ ई०, 'काव्यमंजूपा' का भंशोधित मंस्करण । ८. द्विवेदी-काव्यमाला--१६४० ई०, द्विवेदी जी को उपयुक्त रचनाओं और प्रायः अन्य
ममस्त कविताओं का संग्रह । ____ कविता-कलाप-~~६०६ ई०, द्विवेदी जी द्वारा मम्पादित, महावीर प्रसाद द्विवेदी,
राय देवी प्रसाद पूर्ण नाथुराम 'शंकर', कामता प्रसाद गुरु और मैथिली शरण गुप्त की कविताओं का प्रायः मचित्र मंग्रह ।
गद्य
अनूदित १ भामिनी-बिलाम--- १८६१ ई०. संस्कृत-कवि पंडितराज जगन्नाथ की संस्कृत पुस्तक
'भामिनी-विलास' का समूल अनुवाद । यह द्विवेदी जी की प्रारंभिक
गद्यभाषा का एक सुन्दर उदाहरण हैं | २ अमृत-लहरी--- १८६६ ई०, उक्त पंडितगज के 'यमुनास्तोत्र' का समूल भावानुवाद ।
'भामिनी-बिलाम 'और' अमृत-लहरी' की भूमिकाओं में स्पष्ट है कि द्विवेदी जी ने केवल हिन्दी जानने वालो को मूल संस्कृत रचनाओ की सरम वाणी की अानन्दानुभूति कगने के लिए ही ये अनुवाद किए। सौन्दर्य की दृष्टि में इन कृतियों का क्राई महत्त्व नहीं है किनु द्विवेदी जी की भाषा के विकास का अध्ययन करने में ये विशप उपयोगी है । आज व्याकरण की दृष्टि मे अमंगत कही जाने वाली तत्कालीन अनेक व्यापक प्रवृत्तियों का इन रचनाश्री में दर्शन होता है। ३- बेकन-विचार-रत्नावली-१८६ ई. में लिखित श्रार १६०१ ई० में प्रकाशित, अंग्रेजी के
प्रसिद्ध लेग्वक बेकन के निबन्धो का अनुवाद ।
बेकन के ५६ न्बिन्धों में से २३ को द्विवी जी ने यह कह कर छोड़ दिया है कि उनका विषय वस्तुतः ऐसा है जो एतद्देशीय जनो को तादृश रोचक नहीं है। उनका यह कथन युक्तियुक्त नहा है | OF Ambition, Of Fame' आदि निबन्ध पर्याप्त मुंदर तथा उपयोगी हैं ।
और अनूदित हाने चाहिएँ ५ । पाटटिप्पणी में दिए गए ऐतिहासिक नामों के संक्षिप्त विवरण और एस्तकान्त म व्यक्तिवाचक नामा की सूची ने अनवाद की उपयोगिता का और मी बता