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अपने शिमला अधिवशन म हिन्दी साहित्य ने द्विग्दी जी का साहित्य बाचस्पति' की उपाधि दी।'
पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी की माहित्यिक कृतिया अधोलिखत है--- पछः
अनूदित १. विनय-विनोद-रचनाकाल १८८८ ई०, भतृहरि के वैराग्यशतक' का दोहा में अनुवाद । २. विहार-वाटिका-१८६० ई०, संस्कृत वृत्ती मे जयदेव के 'गीतगोविन्द का मंक्षिप्त
भावानुवाद । ३. स्नेहमाला-१८६० ई०, भतृहरि के शृंगारशतक' का दोहो में अनुवाद । ४. श्रीमहिम्नस्तोत्र-१८८५ ई० मे अनूदित किन्तु १८६५ ई० मे प्रकाशित, संस्कृत के
महिम्नस्तोत्रम् का संस्कृत वृत्ती में मटीक हिन्दी अनुवाद । ५ गंगालहरी-१८६१ ई०, पंडितराज जगन्नाथ की 'गंगालहरी' का सबैयो में अनुवाद । ६. ऋतुतरंगिणी-२८६ ई०, कालिदास के 'ऋतुमहार' की छाया लेकर 'देवनागरी
छन्दो मे पडऋतु वर्णन' । उपयुक्त कृतियों की द्विवेदी-लिखित भूमिकाओं से सिद्ध है कि उन्होंने मूल संस्कृत रचनाओ की काव्यमाधुरी का श्रास्वाद कराने और हिन्दी मे सस्कृत वृत्तों का प्रचार वराने के लिए ही ये अनुवाद प्रस्तुत किए। ७. सोहागरात--(अप्रकाशित) १६०० ई०, अंग्रेज कवि बाइरन के "ब्राइडल नाइट'
का छायानुवाद । ८ कुमारसम्भवसार--- ६.०२ ई०, कालिदाम के 'कुमारसम्भवम्' के प्रथम पाच सगर्गों का
पद्यात्मक साराश । ग्वडीबोली पद्य में कालिदाम के भावों की व्यंजना का अादर्श उपस्थित करने के लिए ही द्विवेदी जी ने इस अनुवाद
पुस्तक की रचना की थी। मौलिक १ देवी-स्तुति-शतक-१८६२ ई०, गणात्मक छन्दो मे चंडी की स्तुति । २. कान्यकुब्जलीव्रतम् - १८६८ ई०, कान्यकुञ्ज-समाज पर तीखा व्यंग्य । ३ समाचारपत्रसम्पादकस्तवः-- १८६८ ई०, सम्पादकों पर आक्षेप । ४ नागरी-१६०० ई०, नागरी-विषयक चार कविताओं का संग्रह । १ साहित्य सम्मेलन का पत्र मिती सौर १ ५ १९१५ दौलतपुर में रक्षित