________________
दूसरा अध्याय
चरित और चरित्र
पंडित महावीर प्रमाद द्विवेदी का जन्म वैशास्त्र शुक्ल ४, संवत् १६२१ को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गावं में हुआ । वहाँ के राम सहाय नामक एक अकिचन ब्राह्मण को हमारे चरित-नायक का जनक कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ । जन्म के अाध घंटे पश्चात् और जातकर्म के पूर्व शिशु की जिह्वा पर सरस्वती का बीजमंत्र अंकित — कर दिया गया। मंत्रविद्या अपने सुन्दरतम रूप में चरितार्थ हुई।
द्विवेदी जी के पितामह पंडित हनुमन्न द्विवेदी बडे ही प्रकाड पंडित थे उनकी मृत्यु के उपरान्त उनकी विधवा पन्नी ने कल्याण-भावना से प्रेरित होकर कई छकड़े संस्कृत ग्रन्थ उनके एक मित्र को दे दिए।
पंडित हनुमन्त द्विवेदी के तीन पुत्र थे दुर्गा प्रसाद, राम सहाय और रामजन । अमगय देहावसान के कारण वे अपने पुत्रों को सुशिक्षित न कर सके । रामजन का तो बाल्यावस्था में ही स्वर्गवास हो गया था। दुर्गा प्रसाद की जीविका के लिए बैसवाड़े में ही गौरा के तालुकदार के यहाँ कहानी सुनाने की नौकरी करनी पड़ी। राम महाय मेना में भर्ती हो गए ! १८५७
ई० में अपने गुल्म के विद्रोही हो जाने पर वे वहाँ से भागे। मार्ग में सतलज की धाग उन्हे __सैकड़ों मील तक वहा ले गई । २ मूच्छित शरीर किनारे पर लगा । सचेत होने पर उन्होने
द्विवेदी जी की लिखी हुई औषधचरित-चर्चा से सिद्ध है कि इसी प्रकार चिन्तामणि मन्त्र उनकी वाणी पर लिखा गया था।
२ द्विवेदी जी का प्रा निवेदन साहित्य मंदेश एप्रिल १९३६ ई०