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यद्याप बगला , प्रभाव म हि दा म कामलता और अभिव्य नना शक्ति प्रा रा थी और अपरनी र प्रभाव म विगम ग्रादि चिहा का प्रयाग होन लगा था तथापि यह मत्र श यात् था। इन सबके अतिरिक्त तत्कालीन लेखकों ने व्याकरण-संबंधी टोपा के सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसके रूप में सर्वत्र अस्थिरता और असंयतता बनी रही। इनने', 'उनने', इन्है', 'उन्हें', 'मुझे', 'सक्ती'. 'जिस्म', 'परग', 'चिरौरी', 'मांख', 'स्त्रीम' (जेब) 'व्यारी' (रात्रि का भोजन) श्रादि प्रयोगो का बाहुल्य बना रहा। भारतेंदु और प्रतापनारायण मिश्र के बाद हिन्दी साहित्य प्रभंजनपीडित पतबारहीन नौका की भाँति ऊमचूम होने लगा। निकुश लैग्वक बगदुट घोडो की भांति मनमानी सरपट दौडने लगे | उन्हे न भापा की शुद्धता का ध्यान रहा न शैली की। सभी की अपनी अपनी तुंबडी थी और अपना अपना राग था। हिन्दी-भाषा और साहित्य में चारो ओर अगजकता फैल गई। हिन्दी को अनिवार्य अपेक्षा थी एक ऐसे प्रभविष्णु मनानी की जो उस अव्यवस्था में व्यवस्था स्थापित करके भ्रात और अनजान लेग्यको का पथप्रदर्शन कर सके।
____ माहित्य की इम ऊबहावाबड़ पीठिका में पंडित नहावीर प्रमाद द्विवेदी का आगमन हा। करिता के क्षेत्र में वे विषय, भाव, भाषा, शेली और छन्द की नवीनता लेकर आए । हिन्दी के उच्छखल निबन्ध को निबन्धता, एक्तानता दी, और पद्य निवन्धी की अभिनव परम्परा को आगे बढ़ाया। नाट्य साहित्य के उस पतनकाल में नाटककारो, पाठको और दर्शकों को नाट्यकला का ज्ञान कंगने के लिए 'नाट्यशास्त्र' की रचना की । तिलस्मी और जामूली उपन्यामा के कारण जनता की भ्रष्ट रुचि का परिष्कार करने तथा लेन्वको के समन्न भाषा और नाव का अादर्श उपस्थित करने के लिए श्राख्यायिकारूप में संस्कृत के अनेक काव्यग्रन्या का अनुवाद किया । हिन्दी कालिदास और रीडरो की यालाचना के साथ ही हिन्दी मसालोचना-प्रणाली का कायाकल्प किया। हिन्दी मे आधनिक अालोचनाशैली के सूत्रपात का श्रेय उन्ही को है । सत्रह वर्षों तक 'सरस्वती' का सम्पादन करके उन्होंने हिन्दी के मामयिक साहित्य के अभावो की सुन्दर पूर्ति की। सम्पत्ति शास्त्र', 'शिक्षा', 'स्वाधीनता' श्रादि विविव-विषयक मौलिक और अनूदित पुस्तकों की रचना करके हिन्दी के रिक कोप को भरने की चेष्टा की । ऐतिहासिक और पुरातत्वविषयक लेखों द्वारा विदेशी सभ्यता और संस्कृति मे अभिभूत भारतीयों की हीनतानुभूति दूर करने और उनके हृदय में श्रात्मगौरव की भावना भरने का प्रयास किया। विज पनवाज के नहीं सच्चे मात -भाषा-प्रेमी के रूप म हिन्दी भाषा एव साहित्य के प्रचार तथा प्रसार के लिये अपना जीवन अर्पित कर दिया ! असमर्थ तुतलाती हिन्दी को सक्षम और प्रौद्र रूप देकर उसके इतिहास को बदल दिया। उन्होंने साहित्य का ही नहीं एक नवीन युग का निर्माण किया ।
हिन्दी के अनन्य महारथी और एकान्त साधक की साहिन्य-मत्रा का मचित मूल्याक्न __ मना हिन्दी के लिए परम गौरव का विषय है ।