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घास के बठला का रस चूसकर प्राणरक्षा की माधुवप में किसी प्रकार माँगन स्वाते पर पहुँचे । बम्बई जाकर पहले चिमन लाल और फिर नरसिंह लाल के यहाँ नौकरी करते रहे । ये बड़े ही भजनानन्द जीव थे। पल्टन में भी पूजा-पाठ किया करते थे । १८८० ई० तक घर चले आए और १६ मे महाप्रस्थान किया ।
राम सहाय के एक कन्या भी थी जो पुत्रीवती होकर स्वर्ग सिधारी । नतिनी की भी वही दशा हुई ।
पिता को महावीर का इष्ट होने के कारण पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा गया । वाल्यकाल में चचा ने शीघ्रवोध', 'दुर्गासप्तशती', 'विष्णुसहस्रनाम', 'मुहूर्त' चिन्तामणि', और 'अमरकोश' के कंठ कराए। बालक द्विवेदी ने ग्राम पाठशाला में हिन्दी, उर्दू और गणित की प्रारंभिक शिक्षा पाई। दो तीन फारभी पुस्तकें भी पढ़ी | ग्राम-पाठशाला की शिक्षा समाप्त हो गई। प्रमाणपत्र में अध्यापक ने प्रमादवश महावीर सहाय के स्थान पर naras are लिख दिया । श्रागे चलकर यही नाम स्थायी हो गया ।
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अँगरेजी का माहात्म्य उनके पिता और चाचा को विदित न था । श्रतएव अंगरेजी शिक्षा प्राप्त करने के लिए महावीर प्रसाद राय बरेली के जिला स्कूल में भर्ती हुए । त वर्ष तक दस करोड हिन्दी - जनता का अविरल साहित्यिक अनुशासन करने वाले इस महान् नाहित्यिक सेनानी की तत्कालीन जीवन-गाथा वही हो हृदय विदारक है । तेरह वर्ष का कोमल किशोर आटा, दाल पीठ पर लादकर अठारह कोन पैदल जाता था । पाक कला में अनभिज्ञ होने के कारण दाल में आटे की टिकियाँ पकाकर ही पेटपूजा कर लिया करता था। एक बार तो जाड़े की ऋतु में सारी रात पैदल चलकर नॉच बजे सवेर घर पहुंचे। द्वान्द्र था. माँ नक्की पीस रही थी। वान्तक की पुकार सुनकर ससम्भ्रम दोss | free दिए | श्रान्त सन्तप्त बन्स को अपने स्निग्ध आँचल की शीतल छाया में नर समेट लिया । वात्सल्यमयी जननी का कोमल हृदय नयनो का हार तोडकर वह निकला । धन्य भगवान् की महिमा ! वह जिस पर कृपा करता है उसकी जीवन प्याली में वेदना, अशान्ति और कठिनाइयाँ उडेल देता है और जिस पर प्रसन्न होता है उसे कंचन, कामिनी और कास्की Faminभूमि का श बना देता है। उसके शाप और वरदान की इस रहस्यमयी प्रणाली वामनभा सकते है ?
पिक विना न था विष हावर न्ह फारसा लेन पा