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प्रामाहा नहीं मिला नि दी साहित्य कसल करितामय था क्शव श्रार उन अनवता कविया न सस्कृत काव्यालोचन के आधार पर साव्यशास्त्रीय ग्र था की रचना की ऋविया
और उनकी कृतियो की आलोचना के नाम पर लोक-प्रचलित कतिपय सूक्तियों की ही मृष्टि हुई----
सूर सूर तुलसी मसी उड्डगन केशव दाम । कलि के कवि खद्योत सम जंह सँह करहि प्रकाम।। मतमैवा के दोहरे ज्यो नावक के तीर ।
देखन में छोटे लगै बाव करै गम्भीर ॥ 'भक्तमाल ने एक प्रकार से परिचयात्मक ममालोचना का सूत्रपात किया था ! , बी शताब्दी में देश विभिन्न हलचलों और पत्र-पत्रिकाओं के विस्तार आदि के कारण लिखित ग्ग न-मण्इन का विशेष प्रचार हुश्रा । बह धार्मिक ग्रंथों में चलकर पत्र-पत्रिकाओं और माहित्यक लेखको तथा रचनायो' तक आई । १८३६ ई० में गार्सा द तामी ने 'हिन्दी और हिन्दुस्तानी माहित्य का इतिहास' और १८८३ ई० में शिवसिंह मंगर ने अपने 'शिवमिह. मरोज' में हिन्दी के पुराने कवियो का इतिवृत्त-संग्रह निरवा । भारतेन्द-युग के लेग्या में अालोचना का आरंम्भिक रूप अवश्य दिखाई पड़ता है परंतु उनमें वास्तविक अालोचना का कोई तन्त्र नहीं है । प्रथकारो के गुण-दोष-दर्शन में भी विवेचना का मर्वथा अभाव है।
हिंदी साहित्य में अालोचना का वास्तविक प्रारम्भ बालकृष्ण भट्ट और बदरी नागयगा चौधरी 'प्रेमघन' ने किया ! १८८५ ई० मे गदाधर सिह ने 'श्रानन्द कादंबिनी' में बिगविजेता' के अनुवाद की प्रान्नोचना लिस्ली । १८८६ ई. में बालकृष्ण भट्ट ने श्री निवास दास के 'सयोगिता-स्वयंवर नाटक की सच्ची ममालोचना' प्रकाशित की। उसी वर्ष प्रेमघन ने अपने पत्र 'श्रानंद-कादंबिनी' में वकीस पृष्ठों में उसकी विस्तृत समालोचना की । मन्
८८६ ई० में डा० ग्रियर्सन का 'माइन वर्नाक्यूलर लिटरेचर श्राफ नार्दर्न हिदुस्तान' प्रकाशित हुआ । १८६३ ई० में नागरी-प्रचारिणी-सभा की स्थापना हुई और उमी वर्ष 'नागरी दाम का जीवन-चरित' लेख का पाठ हुआ { १८६६ ई० में गंगाप्रसाद अग्निहोत्री ने समालोचना' नामक पुस्तिका स्लिवी ।
१८६७ ई० में नागरी-प्रचारिणी-पत्रिका' का प्रकाशन प्रारम्भ हुना । उसी वर्ष उमम जगनाथदास 'रत्नाकर' का पद्यात्मक समालोचनादर्ग' और अम्बिकादत्त व्यास का गध मीमासा' लेख प्रकाशित ह याधुनिक की विशेषताएँ न होन डा भी इममें