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नैतिकता, धार्मिकता, सुधार, उपदेश श्रादि लोक कल्यागा-कारण बहुत कुछ ह; परन्न उपन्यास-कला का अभाव है। घटनायो के संग्रह और त्याग, कथा की वस्तुयोजना, पात्रा का चरित्र-चित्रण ऋथोपकथन और संख्या, भावनाओं के विश्लेषण, भापा के प्रयोग और शैली, रम-परिपाक आदि में वही भी सौदर्य नहीं है। निस्महाय हिन्दू' जैम उपन्यामा मे ढोल ढाले कथानक के बीच पात्रों का अतिशय बाहुल्य अथवा 'सो अजान और एक सुजान' म नाटको का सा स्वागत एवं प्रकर. भाषण, पत्रानुसार विभिन्न भाषाओं के शब्दो का प्रयोग, 'काद बरो' की सी जा रहकारिक शैली छादि बातें अाज उपन्यास-कला को दृष्टि से हेय समझी जाती हैं । रति की एकागी परिधि के अन्तर्गत घिरे हुए, प्रेम-प्रधान उपन्यामा की सजीवता. उनमें व्यापक जीवन की ममस्याओं का निरूपण न होने के कारण नाट सी हो गयी है।
किशोरीलाल गोस्वामी और देवकीनन्दन खत्री ने तिलस्मा और जासूसी उपन्यास का जो बीज बोया उसे अंकुरित और पल्लवित होते देर न लगी। 'स्वर्गीय कुसुम', 'लबंगलता', 'प्रणयिनी-परिणय', 'कटे मुंड की दो बातें', 'चतुरसस्त्री'. 'सच्चा सपना', 'कमलिनी', 'दृष्टांतप्रदीपिनी'. 'चन्द्रकाता' और 'चन्द्रकान्ता--मंतति', 'नरेन्द्र-मोहिनी', 'कुसुम-कुमारी', 'वीरेन्द्र. वीर', सुन्दर-सरोजिनी', 'वसन्त-मालती', 'भयानक भेटिया', 'प्रवीगा पथिक', 'प्रमीला' अादि रचनायो ने एक जाल मा बुन दिया। कही घोडी को सरपट दौडाने वाले अवगुंठित अश्वारोही, कहो तात्रिक देवी और जादू के चमत्कार, कही नायक नायिकाओं के अद्भुत शौर्य और प्रेम का सम्मिश्रण, कहीं प्रेमियों के विचित्र पद्यन्त्र और कही जासूसी के भयानक हथकंडे पाठको के मन को अभिभूत कर देते हैं ।
जीवन में दूर, कल्पना की उपज और घटना-वैचित्र्य-प्रधान इन उपन्यासो में मानवसहज भावों और चरित्रों का चित्रण नहीं है। लेखक के क्थन की धकधकाहट के बीच यत्र-तत्र प्रेमालाप और षड्यन्त्र-रचना म प्रयुक्त पात्रों के ऋथोपकथन अस्वाभाविक और प्रागाहीन हैं । पात्रो के चरित्र का विश्लेपण या उनके मानसिक पन्न की समीक्षा नहीं है। ये शूत्य-स्थित उपन्यास वैज्ञानिक-युग के साहित्यिको की तुष्टि न कर सके । ८८ ई० में किशोरीलाल गोस्वामी ने 'उपन्यास' पत्र निकाल कर उपन्यामी को दीनावस्था को मुधारने का उद्योग किया परन्त उनके भगीरथ-प्रयत्न करने पर भी गंगा धरती पर न आई ।
हिन्दी साहित्यकारों ने बहुत ममय तक अालोचना की ओर ध्यान नहीं दिया । रचनात्मक माहित्य की कमी और पथ के अनुपयुक्त माध्यम के कारण समालोचना को तनिक मी