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अध्ययन और गवेषणा की गम्भीरता है। कवियों और लेखक) क माग-प्रदशन पार गुला--
दोप दर्शन की दृष्टि से इन बालोचनों का प्राग्द्विवेदी युग में विशेष महत्व है। हिन्दीअलोचना के प्रारम्भिक युग में पत्र-सम्पादकों ने उल्लेखनीय कार्य किया। उस काल की बहुत कुछ आलोचनात्मक सामग्री 'हिन्दी-प्रदीप', 'अानन्द-कादम्बिनी' और 'नागग-प्रचारिश पत्रिका' मे बिखरी पड़ी हैं । बालकृष्ण भट्ट ने समय समय पर अपने "हिन्दी-प्रदोप' में संस्कृत माहित्य और कवियो की परिचयात्मक अालोचना प्रकाशित की. आलोच्य पुस्तकों का विस्तृत
दोष विवेचन किया । तत्कालीन अालोचनायो में अनावश्यक विस्तार और ढीलापन है,
भमालोचना' पुस्तक में विदित है कि प्रारमिक बाल वको ने कुछ ठोक दियान का कार्य किया पर श्रागे चलकर अालीचना बिलबाट वा व्यवमात्र के साधन को वस्तु ममी आन लगा। अालोचक लेखकों के राग या दंषयश गुणमलक या दोपमूलक अालोचना करने लगे। परस्पर प्रशंसा या निन्दा के लिए दलबन्दो टोने लगी । पुस्तक के स्थान पर लेखक ही बालोचना का लक्ष्य बन गया । आलोचनाओं का उद्देश्य होने लगा ग्रन्थकर्तात्रा का उपहास, बालोचक का विनोद अथवा सस्ता नाम कमाने के लिए, विद्वत्ता-प्रदर्शन । कभी कभी तो समालोचक महाशय पुस्तक कागद और छापे की प्रशमा करके मूल्य पर अपनी मम्मति मात्र दे देते थे। रचना के गुण-दोषों की विवेचना के विषय में या तो मौन धारण कर लेते थे या अत्यन्त प्रकट विषयो पर दो चार प्रशसा के शब्द कह कर मन्तोष कर लेते थ । वास्तव में उन्हें समालोचना के निश्चित अर्थ, उद्देश्य और आदर्श का ज्ञान ही नहीं था।
१८५७ ई. के पहले देशी भाषा के पत्रों पर कोई मरकारी प्रतिबन्ध नहीं था। तथापि 'उदन्त-मार्तंड' (१८२६ में २८ ई०), 'बनारस अन्त्रवार' ( १८४५ ई०), 'सुधाकर ( १८५० ई० ), 'साम्यदन्त मार्तण्ड' ( १८५०-५१ ई०), 'समाचार सुधावर्षण' ( १८५४ ई०) श्रादि कुछ ही पत्रो का उल्लेख मिलता है । "बनारस-अखवार" की भाषा मुख्यतः उद थी। कहीं कही हिन्दी शब्दों का प्रयोग था | उसकी भाषा-नीति के प्रतिकार रूप में ही "सुधाकर' का प्रकाशन हुआ । सर्व प्रथम हिन्दी दैनिक-पत्र 'समाचार-सुधा-वर्पण' में मुख्य मुख्य विषय तो हिन्दी में थे परन्तु व्यापार-समाचार बंगला में !
निग द्वारा पत्रकारों की स्वाधीनता छिन जाने पर भी भारतेन्दु आदि ने पत्र-पत्रिकामा * समुचित निर्वाह किया । सन् १८६८ ई० में उन्होंने 'कवि-वचन-मुधा' निकाली। उम
१ उसके मुख पृष्ठ पर मुद्रित सिमान्त वाफ्य था