________________
I
"भारत दुर्दशा" में हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों का मत-मतांतर, जाति-पाति के भेदमात्र, विवाह और पूजा संबन्धी कुप्रथाश्री, विदेश गमन-निषेध, अरेजी शासन श्रादि पर आक्षेप किया गया है ।
९०
प्रतापनारायण मिश्र के 'कलिकौतुक - रूपक' मे पाखंडियों और दुराचारियों का तथा 'भारत दुर्दशा', 'गोसंकट नाटक' और 'कलि- प्रभाव नाटक' में श्रीसम्पन्न नागरिक जनों के गुप्त चरित्रों का चित्रण किया गया है । राधाचरण गोस्वामी के 'तन मन धन श्री गोसाई जी के अर्पण' में रूढ़िवादी तथा अन्धविश्वासी वृद्धजनों के विरुद्ध नवयुवक दल के संघर्ष और 'बूढे मुँह मुहाँसे' में किसान की जमींदार विरोधी भावना तथा हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य का निरूपण है। काशीनाथ खत्री के 'ग्राम-पाठशाला' 'निकृष्ट नौकरी' और 'बाल विधवा- संताप, राधा कृष्णदास के 'दुखिनीवाला' तथा अन्य नाट्यकारों के नाटकों में भी समाज की दीन-दशा के विविध चित्र अङ्कित किए गए है 1
निबन्धकारों ने भी 'राजा भोज का सपना' ( सितारे -हिन्द), 'एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न' ( भारतेन्दु), 'यमलोक की यात्रा' ( राधाचरण गोम्वामी ), 'स्वर्ग में विचार-सभा का अधिवे शन' ( भारतेन्दु ) आदि निबन्धों में तत्कालीन धर्म, कर्म, दान, चन्दा, शिक्षा, पुलिस, कचहरी, आदि पर तीखा व्यय किया है । 'भारतेन्दु प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, आदिकवियों ने सामाजिक दुरवस्था को श्रालम्बन मान कर रचनाएँ की हैं।
पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान और सभ्यता-संस्कृति की शिक्षा दीक्षा ने भारतेन्दु-युग को इतिहास
Dena na lena muft ke aye hain yaha Bare Darbari ki dum,
इस संबंध में डा० रामबिलास शर्मा का 'भारतेंदु युग' ( पृ० १२ - ११२) अवलोकनीय है १ देखिये भारतेन्दु-युग -- (डा० रामविलास शर्मा ) पृ० ६५ - . १२२
२ सेल गई बरछी गई, गये तीर तरवार
घड़ी छड़ी चसमा भये, क्षत्रिन के हथियार । बालमुकुन्द गुप्त 'स्फुट कविता'
'श्रीराम स्तोत्र' पृ છ
बात वह अगली सब सटकी, बहू जब मैं थी घू ंघट की । घुटावें क्यों पिंजड़े में दम, नहीं कुछ यंधी चिड़िया हम ॥
बाबू बालमुकुन्द गुप्त कृत 'स्फुट कविता' - 'सभ्य बीबी को चिट्ठी' पृ० ११०
farar बिलपै अरु धेनु करें, कोउ लागत हाय गोहार नहीं । कौन करेजो नहिं कसकत सुनि विपति बात बिधवन की है, ar are me कन्दना कान्यकुब्ज कन्यन की है ।
मिश्र 'मन की बहर'