________________
वारेन हेस्टिग्ज ( १७७४-५ ई० ) और जानेया टकन ( १७१५ १८११ ई० ) द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों को संस्कृत और फ़ारसी मे सास्कृतिक शिक्षा देने की अायोजना की गई थी । विज्ञापन के युग मे प्राचीन ढंग की धार्मिक शिक्षा पान न थी । १८१३ ई० में पार्लियामेंट ने ज्ञान-विज्ञान की वृद्धि के लिये एक लाख रुपये की स्वीकृति दी, परन्तु इससे कोई उद्देश्य पूर्ति हुई नहीं 1 राजा राममोहन राय आदि भारतीयों की सहायता से डेविड हेअर ने १८१६ ई० में कलकत्ते मे एक अङ्गरेजी स्कूल खोला और १८३७ ई० में लार्ड मेकाले ने अगरेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाया । १८४४ ई० में हार्डिग्ज के चार्टर के अनुसार नौकरियाँ अगरेजी पढे-लिखे लोगों को दी जाने लगी । १८५४ ई० में लार्ड डलहौज़ी और चार्ल्सवुड ने नई शिक्षा-योजना बनाई जिसके फलस्वरूप गावों में प्रारंभिक और नगरी मे हाई स्कूल खोले गये । सिद्धान्त रूप में शिक्षा का माध्यम देशी भाषाएँ थीं परन्तु कार्य-क्रम से अगरेजी ही माध्यम रही । ईसाई-धर्म-प्रचारकों का शिक्षा का क्रम पहले ही से जारी था। १८५७ ई० मे कलकत्ता, बम्बई और मद्रास विश्व-विद्यालयों की स्थापना हुई।
२८७५ ई० के विद्रोह-शमन के बाद अँगरेजी राज्य दृढ़ हो गया । किन्तु साधारण जनता के हृदय में शासकों के प्रति श्रद्धा कम और अातङ्क अधिक था । भारतीयों की इम मनोवृत्ति को बदलने के लिये सरकार उनकी सस्कृति में परिवर्तन करना चाहती थी। इसीलिये अंगरेजी माध्यम और पाश्चात्य साहित्य के पाठन पर अधिक जोर दिया गया था । यद्यपि पश्चिमी विज्ञान, साहित्य, इतिहास, आदि के अध्ययन से भारतीयो की दृष्टि में बहुत कुछ व्यापकता आई और सामाजिक अवस्था में बहुत कुछ सुधार हुअा, तथापि अगरेजी माव्यम ने भारतीय साहित्य और जीवन का बड़ा अहित किया । उसने देशी भाषाओं की उन्नति का मार्ग रूंध दिया । विदेशी साहित्य, शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति से मोहित भारतीय नवयुवक उन्हीं के दास हो गये। वे अपनी भाषा साहित्य, सभ्यता, संस्कृति, जाति या धर्म की सभी बातो को गॅवारू समझने लगे। उन्हें "स्वदेश", 'भारतीय', 'हिन्दी' जैसे शब्दो से चिढ होने लगी। वे हृदयहीन शिक्षित अल्पज्ञ अशिक्षितों और धनहीनों के प्रति प्रेम और सहानुभूति करने के स्थान पर तिरस्कार और घृणा के भाव धारण करने लगे । शिक्षा के क्षेत्र में काशी के राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिन्द' और पंजाब में नवीनचन्द्रराय ने हिन्दी के लिये महत्वपूर्ण कार्य किया।
कुछ ही काल के उपरान्त हिंदी-साहित्यकारों को अपनी संस्कृति, सभ्यता और साहित्य के पुनरुद्धार की अावश्यकता का अनुमव हुअा मारतेदु र ण