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की शाखाना, गुरुकुलों और गोक्षिणी समाना की स्थापना की, विधवा-विवाह निषेध, बाल-विवाह, ब्राह्मण धर्मान्तर्गत कर्मकाण्ड, अन्धविश्वास आदि का घोर विरोध किया। उन्हों ने पाश्चात्य विचार-धारा की भित्ति पर स्थापित ब्राह्म-समाज ने बहु देववाद, मूर्तिपूजा, बहुविवाह आदि के विरुद्ध संग्राम किया। श्रार्य-समाज के सिद्धान्त का अाधार विशुद्ध भारतीय था । इसने ब्राह्म-समाज के पाश्चात्य प्रभाव को रोकते हुए देश का ध्यान प्राचीन भारतीय सभ्यता की ओर खींचा । विवेकानन्द ने शिकागो मे भारत की आध्यात्मिकता का प्रचार किया। ‘थियोसोफिकल सोसायटी' ने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का सन्देश सुनाते हुए भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की तथा उसका प्रचार किया। रामकृष्ण मिशन ने प्रारंभ में आध्यात्मिक और फिर आगे चलकर लोक-सेवा के अादर्श की प्रतिष्ठा करने का प्रयास किया । इस प्रकार देश के विभिन्न भागों में स्थापित धार्मिक संस्थानों ने पश्चिमी भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता, धर्म और शिक्षा तथा अपनी निर्बलतायो से उत्पन्न बुराइयों को दबाने का उद्मोग किया ।
इन धार्मिक आन्दोलनों ने हिन्दी साहित्य को भी प्रभावित किया । दयानन्द सरस्वती, भीमसेन शर्मा आदि ने हिन्दी में अनेक धार्मिक पुस्तके लिस्त्री और अनेक के हिन्दीभाध्य प्रकाशित किये । श्रार्थ-समाजिया के विरोध में श्रद्धाराम फुल्लौरी अम्बिकादत्त व्यास आदि सनातन-धर्मियों ने भी बबण्डर उठाया । धार्मिक घात-प्रतिघात में खंडनमडन के लिए हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना हुई । दयानन्द लिखित 'सत्यार्थप्रकाश', 'वेदाग-प्रकाश', 'संस्कार-विधि', अादि, श्रद्धाराम फुल्लौरी लिखित 'सल्यामृतप्रवाह', 'भागवती' श्रादि, अम्बिकादत्त व्यास-लिखित 'अवतार-मीमासा' 'मूर्ति-पूजा', 'दयानन्द-पाडित्य-खंडन' आदि कृतियाँ इसी धार्मिक संघर्ष की उपज हैं । इन रचनात्रा की भाषा व्याकरण-विरुद्ध और पंडिताऊ होने पर भी तक और श्रोन से विशिष्ट है ।
माहित्यकार भी इस खंडन-मंडन से प्रभावित हुए । भारतेन्दु ने इस सब खंडन-मन के झगड़ों से दूर रह कर प्रेमोपासना का सदेश दिया
खंडन जग में काको कीजे । पियारो पइये केवल प्रेम में" १ प्रतापनारायण मिश्र ने तो एक ग्थल पर इस झूठे धार्मिक वितंडावाद से ऊबकर अशरण शरण भगवान् की शरण ली है। "झूठे झगड़ों से मेरा पिंड छुड़ायो । मुझको प्रभु अपना सजा दास बनायो।" १ 'भारतेन्दु-ग्रन्थावली'. पृ० १३६ २ प्रेम पुष्पावनी' बसत'