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प्रचार के उद्दश्य से पादरियों ने जन साधारण की भाषा म व्याख्यान और शिक्षा की आयोजना की। सन् १८०२ ई० में "दी न्यू टेस्टामेंट" का हिन्दी अनुवाद हो चुका था । सन् १८०६ और १८२६ ई० के बीच पश्चिनी हिन्दी, ब्रजभाषा, अवधी, मागधी, उज्जैनी और बघेली में भी धर्म-ग्रन्थ प्रकाशित किए गए । सन् १८५० ई० तक बाइविल के ही अनेक हिन्दी अनुवाद हो गये और श्रागे भी अनुवादों की शृखला जारी रही ।
'अमेरिकन मिशन', 'क्रिश्चयन एज्यूकेशन सोसाइटी', 'नार्थ इडिया क्रिश्चयन टेक्ट एंड बुक सोसाईटो', 'क्रिश्चयन वर्नाक्यूलर लिटरेचर सोसाइटी', 'नार्थ इडिया अविजलियरी बाइविल सोसाइटी' आदि ईसाई संस्थानो ने हिन्दो को धर्म-प्रचार का मान्यम बनाकर उसका प्रचार किया। अपने धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन और, अन्य धर्मों की अालोचना करने के लिये पादरियों ने अागरा, इलाहाबाद, सिकन्दरा, बनारस फर्म खावाद आदि नगरों में प्रेस स्थापित किये और उनसे सैंकड़ा पुस्तके प्रकाशित की।
१६ वी शती के प्रारम्भ में हो पश्चिमी सभ्यता और धर्म का आघात पाकर देश में उत्तेजना की लहर दौड़ गई । हिन्दुओ को अपने धर्म की ओर आकृष्ट करने के लिये ईसाइयो ने हिन्दू धर्म की सती-सरीखी क र और भयकर प्रथानों पर बुरी तरह आक्षेप किया था। राजा राममोहन राय आदि नव-शिक्षित हिन्दुओं ने म्वयं इन कुप्रथाओं का विरोध किया । इसी समाज सुधार के उद्देश्य से उन्होंने सन् १८५८ ई० 'ब्राह्म समाज' की ग्थापना की। तत्पश्चात् 'आर्य समाज' (१८७५ ई०), "थियोमाफिकल सोसायटी' (सन् १८७५ ई० मे न्यूयार्क नथा १८७६ ई० में भारत में) गमक्कु गा |मशन' श्रादि धार्मिक सम्याया को स्थापना हुई। .
दयानन्द सरस्वती ने ( १८२४-८३ ई० ) वैदिक धर्म का प्रचार किया, आर्य समाज किमि के बवावै श्वांस और कौन अोर घसे, सोवै साथ चार चार एक ही रजाई में। बाबू पुत्तनलाल 'समस्यापूर्ति', भा०५ पृ० ६ ।
संपादक --राम कृष्ण वर्मा, १८६६ ई० पै दुख अति भारी इक यह जो बढ़त दीनता, भारत में संपति की दिन दिन होत छीनता ।
प्रेमधन, 'हार्दिक हथीदर्श' जिनके कारण सब सुख पात्रे, जिनका बाप सब जा खोय, हाय हाय उनके बालक नित भूखों के मारे चिनाय ।।
गप्त स्फुट कविता जातीय गीत' ६२