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वहीं बाच्यप्रधान वर्णनामक शैली में वस्तुपस्थापन किया गया है तो कहा लक्ष्यप्रधान faaree शैली का चमत्कार है | १
द्विवेदी जी ने कवियों को विषय परिवर्तन की भी प्रेरणा दी। उन्होंने नायक-नायिका श्रादि के शृंगारादि वन और अलंकार, समस्यापूर्ति आदि के जाल से ऊपर उठकर सामाजिक, प्राकृतिक श्रादि स्वतंत्र विषयो पर फुटकर कविताएं तथा आदर्श चरित्रों को लेकर प्रबन्ध-काव्य लिखने का निर्देश किया । यो तो भारतेन्दु-युग ने भी शृंगारेतर रचनाए की थीं परन्तु वे अपेक्षाकृत बहुत कम थीं । द्विवेदी युग ने शृंगारिकता से आगे बढकर जीवन के अन्य पक्षो पर भी उचित ध्यान दिया । शृंगार प्रधान रचनाओ में भी उसने प्रेम को व्यापक, विश्वजनीन या रहस्योन्मुख रूप देकर उसे उत्कृष्ट बना दिया । वय विषय की दृष्टि से उस युग की कविताओं का दुहरा महत्व है । एक तो उन कवियों ने नवोन विषय पर रचनाएं की और दूसरे परम्परागत मानव, प्रकृति आदि विषयो को नवीन दृष्टि ने देखा |
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युगनिर्माता द्विवेदी के सामने जो उदीयमान कविसमाज था उसमे ईश्वरदत्त प्रतिभा भले ही रही हो परन्तु लोक, शास्त्र आदि के श्रवेक्षण से उत्पन्न निपुणता और अभ्यास की न्यूनता थी । द्विवेदी जी ने विषय परिवर्तन की घंटी तो दे दी किन्तु नौसिखिए कवियों को परम्परागत विषयों के अतिरिक्त काव्योपयुक्त अन्य विषय दिखाई ही न पडे । स्वयं द्विवेदी जी रविवर्मा के चित्रो से प्रभावित होचुके थे और उनपर कविताएं भी की थी । अनुगामी कविसमाज ने भी अन्य सुन्दर विषयों को न पाकर परम्परागत विद्या, कमल, कोकिल, ऋतु श्रादि के अतिरिक्त रविवर्मा यादि के कलात्मक चित्रों को लेकर उनपर वर्णनात्मक कविताएं लिखी । इनका एक संकलन १६०६ ई० में 'कविताकलाप' के नाम में प्रकाशित भी हुआ ! चित्रविषयक कविताएं प्रायः द्विवेदी युग के प्रथम चरण में ही लिखी गई । इन कविताओं में कवियों ने चित्रकार और कही कही उन्हें प्रकाशित करने वाली 'सरस्वती' का भी उल्लेख किया | 3
धार्मिक कविता के क्षेत्र में उस युग के कवियों की मनोदृष्टि की नवीनता अनेक रूपो में व्यक्त हुई । पौराणिक अवतारवाद से प्रभावित भक्तिकाल ने राम और कृष्ण को ईश्वर के रूप में चित्रित किया था। बीसवी शती ई० के विज्ञानयुग में उनके मानवीकरण की
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१. उदाहरणार्थं मैथिलीशरण गुप्त 'किसान ।'
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'सू' श्रनि ।
अर्जुन और सुभद्रा श्रमिकविताम