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२६३ हिन्दी-जनता का हृदयहार बन गई थी । प्रिय प्रवास श्रादि रचनाए अतिशय संस्कृत प्रधान होते हुए भी प्रसन्न है। प्रमाद गुण किमी एक ही भाषा या बोली की मम्पत्ति नहीं है , वह बोलचाल, उर्दू फारसी या संस्कृत की पदावली में समान रूप से व्याप्त हो सकता है । कवि की भाव व्यंजना ऐसी होनी चाहिए जिसे पड़ या सुन कर पाठक या श्रोता के हृदय में अबाध रूप मे ही प्रसन्नता की अनुभूति हो जाय । युग के प्रारम्भ या अन्त में कुछ कवियों की कविता का दुरूह हो जाना उनकी व्यक्तिगत अभिव्यंजना-शक्ति की निर्वलता का परिणाम था। पंत, प्रसाद या माखनलाल चतुर्शीदी की कुछ ही कविताएं गूढ़ हैं। ग्वनि के रहते हुए भी कविता सरल और सुबोध हो सकती है।
ओज गुग का विशेष चमत्कार नाथूराम 'शकर', मारवनलाल चतुर्जेदी और सुभद्राकुमारी चौहान की रचनाओं में दिखलाई पड़ा। आर्य समाजी होने के कारण नाथूराम शर्मा मे अश्वपन, निर्भीकता और जोश की अधिकता थी। माखनलाल चतुर्वेदी और मुभद्राकुमारी चौहान देश के स्वतन्त्रता-मंग्राम में सक्रिय योग दे रही थी। अतएव उनकी अभिव्यक्ति का श्रांजोमय हो जाना अनिवार्य था। राजनैनिक और धार्मिक हलचल ने कवियों के मन में एक क्रान्ति सी मचा दी। उन्होंने समाज, साहित्य अदि की बुराइयों पर लट्ठमार पद्वति द्वारा आक्रमण किया । मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्या सिह उपाध्याय गोपालशरणमिह श्रादि की कविताओं में माधुर्यमयी व्यंजना हुई । विशेष रमणीयता-प्रतिपादक कोमलकात पदावली का दर्शन आगे चलकर पंत की कविताओं में मिला।
द्विवेदो-युग की कविताओं में भी सभी प्रकार की भाषा का प्रयोग हुअा। एक श्रोर तो सरल और प्राजल हिन्दी का निरलंकार सहज सौन्दर्य है और दूसरी ओर संस्कृत की अलंकारिक समस्त पदावली की छटा ।३ वहीं तो प्रसन्न वाक्यविन्यास का अजल प्रवाह है। और कहीं छायावादी कवियों की अतिगूड व्यंजना ।५ एक स्थान पर मुहावरो और बोल चाल के शब्दो की झड़ी लगी हुई है तो दूसरे स्थल पर उन्हे तिलाजलि भी दे दी गई है। १. उदाहरणार्थ १६०८ ई. की 'सरस्वती' में प्रकाशित नाथूराम शर्मा की पंचपुकार'
और मैथिलीशरण गुप्त की पंचपुकार का उपसंहार' कविताम् । २. उदाहरणार्थ 'जयश्रवध ॥' ३. , प्रियप्रवास ॥" ४. ., भारतभरनी ॥ निराला-लिखित “अधिवास' कविता ।
माधुरी भाग १, खंड २, संख्या ४, पृ. ३५३ । हरिऔध जी के भने और 'चोखे चौपदे ।' प्रियप्रवाम
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