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प्रयाग का दि समान अनोगट की भागावधिनी स | मरट के देव-नागरी प्रचारिणी ममा', अारा को 'नागरी प्रचारिणी मभा', कलकत्ता को 'एक लिपि विस्तार परिषद'. एवं हिन्दी साहित्य परिषद', प्रयाग की 'नागरी प्रवर्द्धिनी सभा', छत्रपुर में। 'काव्यलता सभा', जालन्धर और मैनपुरी की 'नागरी प्रचारिणी सभा', श्रादि संस्थाएँ मा देव नागरी लिपि और हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार तथा उन्नयन में लगी हुई थीं ।
परस्पर-विचार-विनिमय, मातृभाषा की हितचिन्तना और उसकी उन्नति के उपाय निश्चित करने के लिए काशा नागरी प्रचारणा सभा ने १८-११-१२ अक्टूबर १६१० ई. का साहित्य-मम्मेलन का योजना की उसमें हिन्दी को राष्ट्र-भाषा और देवनागर] को भारत का राष्टलिपि बनाने तथा सरकारी कार्यालयो, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी को उचित स्थान दिलाने के लिए अनेक प्रोजपूर्ण प्रस्ताव पास किए। सम्मेलन का दूमर अधिवेशन प्रयाग की नागरी प्रबर्द्धिनी समा' के तत्वावधान में हुआ और उसे स्थायी रूप दिया गया। सरकारी अदालतो, पत्रो, ग्लव के कायां नथा भावी हिन्दू विश्वविद्यालय म हिन्दी को उचित स्थान देने, हिन्दी सभाओं से नाटक खेलने, सम्मेलन परीक्षाएँ प्रचलित गरने और हिन्दी को राष्ट माषा बनाने का प्रयत्न करने के विविध प्रस्ताव पास किए गए। उसी अधिवेशन में मादित्य-सम्मेलन के उद्देश्यों की निश्चित रूप रेखा भी निर्धारित
१. प्रथम हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कार्य-विवरण, पृष्ठ २ और ३, के आधार पर । २ (क) हिन्दी साहित्य के सब अंगो की उन्नति का प्रयत्न करना। (ब) देवनागरी लिपि का देश भर में प्रचार करना और देशव्यापी व्यवहारा और काया
को मुलभ करने के लिए हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयत्न करना। (ग) हिन्दी को सुगम, मनोरम श्रोर प्रिय बनाने के लिए समय समय पर उसकी शेली
के संशोधन और उसकी त्रुटियों को दूर करने का प्रयत्न करना । (घ) सरकार, देशी राज्यों, कालेज, यूनीवर्मिटी और अन्य स्थाना, ममाजी तथा
जनसमूहों मे देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा के प्रचार का उद्योग करत
रहना। (च) हिन्दी ग्रन्थकाग, लेखका, प्रचारको ओर सहायकों को समय समय पर उत्साहित
करने के लिए पारितोषिक, प्रशंसापत्र, पदक प्रादि से सम्मानित करना। (छ) उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में हिन्दी का अनुराग उत्पन्न करने और बढ़ाने के लिए
प्रयत्न करना। (ब) जहाँ श्रीश्यकत समझो ज ए वौं पाठशाला समिति तथा पुस्तकालय स्य पित
'न और गो ग या