________________
रामचरित उपाध्याय. नायूराम शर्मा, मन्नन द्विवेदी. जयशंकरप्रसाद श्रादि की कविताओं प्रेमचन्द्र, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी. ज्वालादत्त शर्मा आदि की श्राख्यायिकाश्रो और पद्मसिह शर्मा, मिश्रबन्धु, गंगानाथ झा, श्यामसुन्दरदाम, रायकृष्णा माम श्रादि के लेखो का भी उन्होने यथा,स्थान सुधार किया है।
‘प्रिय प्रवाम' के प्रकाशन ( मं० १६७१ ) मे द्विवेदी-युग का उत्तराद्ध प्रारम्भ दुश्रा। उम समय बड़ीबोली काफी मॅज चुकी थी और ठाम भावों की व्यजना में समर्थ थी। अतएव वह काल स्थायी साहित्य-रन्चना करने में सफल हुआ। द्विवेदी-युग में हिन्दी वाड्मय के विविध अंगो की आशातीत अभावपूर्ति हुई । इतिहाम, भूगोल, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कृषि, गणित, विज्ञान, ज्योतिष्य आदि पर सहला ग्रन्थ लिग्वे गए । वाङमय के इन अंगो की बालोचना यहा अपेक्षित नहीं है। प्रस्तुत निबन्ध भाषा और माहित्य में ही मम्बन्ध रखता है, अतएव इमम द्विवेदी-युग के हिन्दी प्रचारका , पत्रपत्रिकाओं, कविता, नाटक, कथा-साहित्य, निबन्ध, भाषा-शैली और अालोचना की ही समीक्षा करना समोचीन
प्रचार कार्य
६ जुलाई, मन् १८६३ ई. को हो काश! नागरी प्रचारिण! मभा की स्थापना हुई थी । सभा के उद्योग मे सन् १८६८ ई० में संयुक्त प्रान्त की सरकार ने अदालतों में नागरी का प्रचार ऐच्छिक कर दिया और ममन आदि के लिए नागरी और उर्दू दोनो लिपियां के प्रयोग की घोषणा की । सभा ने कचारियों में हिन्दी विद्या लेखकों की युक्ति करके उसमे लाभ उठाने का उद्योग किया । मन् १८६६ ई. में प्रान्तीय सरकार नं ४०० ० ( चार सौ रुपया ) वार्षिक की महायता देना प्रारम्भ किया और ११२१ ई. में यह सहाय ! २००० रु. नक पहुँच गई। सभा ने मैकड़ो नए कवियों और सहस्रो अज्ञात ग्रन्थों की खोज की ? १९२१ ई० मे १६२६ ई० नक के लिए पंजाब सरकार ने भी ५०० रु. की सहायता दी । गवेपरणा के माथ हो माध सभा ने 'पृथ्वीराज रामो', 'जायमी ग्रन्थावली. वैज्ञानिक-कोप'. 'हिन्दी व्याकरण' श्रादि महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन भी किया। प्रकाशनार्थ भी युक्त प्रान्त की मरकार ने कभी २०० रु० और कभी ३०. स. की महायता दी . १९१४ ई० में 'मनारंजन पुस्तकमाला' के अन्तर्गत ममा ने विविध-विषयक और मस्ती पुस्तकों का प्रकाशन प्रारम्भ किया। अपनो 'नागरी प्रचारिशी पत्रिका' के अतिरिक सरस्वती और हिन्दी साहित्य प मापन का अ य भी प्रोंक ममा को है