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चित्रा के चयन और प्रकाशन में द्विवेदी जी ने उनकी कला मनोरंजकता और उपादेयता का सदा ध्यान रखा । उन्ही व्यक्तियों के चित्रों को स्थान दिया जिनका संसार ऋणी है। किसी के प्रलोभन में पड कर महत्वहीन व्यक्तियों के चित्र छापना पत्रिका के मालिका और पाठकों के प्रति अन्याय समझा । 'सरस्वती' के अधिकाश रंगीन चित्र बाबू और रामेश्वर प्रसाद वर्मा द्वारा अंकित हैं ।
मात्र ग्रहण में महायक चित्रों को 'सरस्वती' के सामान्य पाठक भी सहज ही समझ मक्ते थे, किन्तु कलात्मक चित्रों के उच्च भावो का भावन जनसाधारण की समझ के बाहर था। उनकी भावानुभूति कराने के लिए 'चित्र-दर्शन' या 'चित्र-परिचय' खंड की आवश्यक्ता हुई | चित्र और चित्र परिचय एकत्र न होने से पन्ना उलट कर देखने में पाठकों को कष्ट तो अवश्य होता रहा होगा परन्तु यह प्रणाली उनकी स्वतंत्र विचारक शक्ति को विकमित करने में विशेष सहायक श्री
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शैली की दृष्टि से द्विवेदी जी के चित्र-परिचय के चार वर्ग किए जा सकते हैं । वि शृंगारिक एवं स्पष्ट चित्रों के परिचय में उनके नाममात्र का उल्लेख ' कलात्मक चित्रों और उनके रचयिता का विशेष परिचय और अधिक सुन्दर होने पर उनकी प्रशंसात्मक आलोचना अत्यन्त भावपूर्ण एवं प्रभावोत्पादक चित्र का काव्यात्मक निर्देशन और arrear ऐतिहासिक आदि चित्रों की तुलनात्मक विवेचना भी है ।
संपादन के पूर्व मी द्विवेदी जी ने 'सरस्वती' को एक नवीन अलंकार ने अलंकृत किया था और वह था व्यंग्य चित्र | हिन्दी-पत्रिका जगत् के लिए वह एक अद्भुत चमत्कार था | 'माहित्य-समाचार' के चार व्यंग्य चित्र" १६०२ ई० की 'सरस्वती' में ही प्रकाशित हो चुके थे, परन्तु उनका प्रकाशन अनियमित था । १६०३ ई० में संपादक द्विवेदी ने उसे नियमित कर छपा । और ऐसा चित्र छापने से न छापना ही अच्छा समझा गया ।" सरस्वती १२ । ७ । ३५२
१. उदाहरणार्थ 'नवोड़ा-सरस्वती', भा. वंड 15,
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संख्या = दि
'श्रातिथ्य' – सरस्वती, जुलाई १६१८ ई० 'कृष्ण-यशोदा' - 'सरस्वती', जनवरी १६१६ ई० आदि
१९९५ ई० आदि,, -'सरस्वती', मार्च १६१६ ई०,
""पृष्ठ ३१.
'वियोगिनी' 'सरस्वती', दिसम्बर, 'प्राचीन तक्षण कला के नमूने'
'हिन्दी-साहित्य''
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'प्रचीन कविता''
'प्राचीन कविता' का अर्वाचीन अवतार'
बड़ी बोली का प
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६६.
पृष्ठ १००
पृ० १६३
श्रादि
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