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दिया सरस्वता की प्रत्यक संख्या में एक अग्य चिन छपने लगा यद्यपि उनके प्रकाशन का एकमात्र उद्देश था मनोरंजक ढंग से हिन्दी साहित्य की सामयिक अवस्था का दिग्दशन कराना, तथापि उस कल्याणमूलक तीव्र व्यंग्य से अभिभूत हिन्दी - हितपियों को असह्य मनोवेदना हुई। उन्होंने द्विवेदी जी को पत्र लिख कर उन चित्रो का प्रकाशन रोकने का
ग्रह किया । १
द्विवेदी- सरीखे निष्पक्ष हिन्दी-सेवी, निर्भय समालोचक और पाठक - शुभचिन्तक कर्तव्यपरायणसम्पादक ने, कुछ ही लोगों को तुष्ट करने के लिए, अपनी दयाशीलता के कारण, पहले ही वर्ष के अन्त तक उन व्यंग्य चित्रों का प्रकाशन बन्द करके अपने गौरव को घटा दिया ।
उन व्यंग्य - चित्रो की कल्पना और योजना द्विवेदी जी की अपनी ही है परन्तु उनके चित्रकार वे स्वय नहीं हैं । वे चित्रों की रूप-रेखा तैयार करके भेज दिया करते थे और चित्रकार उन्हें निर्दिष्ट रूप से निर्मित कर दिया करता था । इस कथन के समर्थन के लिए 'सरस्वती' की हस्त लिखित प्रति का एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा
साहित्य-सभा
५. उपन्यास
४. समालोचना
३ पर्यटन
२. जीवन चरित
यह हिन्दी साहित्य की सभा है ।
१ में ७ तक कुर्सिया पड़ी हैं । उनका विवरण नीचे देखिए
६. व्याकरा
७. काव्य
'ireefoe सिंहावलोकन' (भा ४ सं० १२) के आधार पर
1
२ सरस्वती की
प्रसिया १३०३३०
८. नाटक
१. इतिहास
कोश. ६
नीचे सरस्वती खड़े खड़े और सभा की ओर देख देख रो रही हैं ।
१.
ग्वाली
२.
खाली
३. एक खूबसूरत लड़का, वय कोई १० वर्ष, इसी प्रान्त का रहने वाला, पायजामा,
नागरी प्रचारणी सभा काशी