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१६८ । 'और भारत का चलन बाजार सिक्का' श्रादि लेखों के प्रकाशनार्थ श्री कंठ पाठक एम. ए.' की उपाधि-मंडित संज्ञा अपनाई । 'मस्तिष्क की विचारणा के लिए तो लोचन प्रसाद पाडेय बन गए । एक बार 'स्त्रियों के विषय में अत्यल्प निवेदन करने के लिए 'कस्यचित् कान्यकुब जस्य' पंडिताऊ जामा पहना तो दूसरी बार शब्दों के रूपान्तर की विवेचना करने के लिए नियम नारायण शमा ४ का मैनिक वेष धारण किया ।
पाठकों की बहुमुखी श्राकाक्षात्री की पूर्ति अकेले द्विवेदी जी के मान की न थी। अावश्यकता थी विविध विषयो के विशेषज्ञ लेखको की जो 'सरस्वती' की हीनता दूर कर मकते । पारखी और दूरदशी द्विवेदी जी ने होनहार लेखकों पर दृष्टि दौडाई । उन्होंने हिन्दीप्रान्तों और भारतवर्ष मे ही नहीं योरप और अमेरिका में भी हिन्दी-लेख को को हुँढा । सत्यदेव, भोलादत्त पांडे, पाडुरंग खानखोजे और रामकुमार खेमका अमेरिका मे; सुन्दरलाल, सन्त निहाल सिंह, जगविहारी सेठ और कृष्णाकुमार माथुर इंगलैड से प्रेम नारायण शर्मा,
और वीरसेन सिंह दक्षिणी अमेरीका मे तथा बेनीप्रसाद शुक्ल फ्रास से लेख भेजते थे ! कामता प्रमाद गुरु, रामचन्द्र शुक्ल, केशव प्रसाद मिश्र, मैथिली शरण गुप्त, गोपाल शरण सिह, लक्ष्मीधर वाजपेयी, गंगानाथ झा, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीदत्त शक्ल, वाबूराव विष्णु पराडकर, रूप नारायण पाडेय, विश्म्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' यादि की चर्चा यथास्थान की गई है।
(ग) नीचे द्विवेदी जी के ही अक्षरों में भुजंग भूपण भट्टाचार्य लिखा गया है (घ.) इसकी बहुत कुछ पुष्टि 'रसज्ञ-रंजन' की भूमिका से हो जाती है, यद्यपि उमी में श्राए
हुए 'विद्यानाथ' कामता प्रसाद गुरु हैं । १. 'राम कहानी की समालोचना' की लिखावट श्राद्योपान्त द्विवेदी जी की है। नीचे द्विवेदी
जी के अक्षरी में श्री कंठ पाठक और फिर उसके नीचे श्री कंठ पाठक एम० ए० लिग्या गया है। २ मूल रचना की लिखावट सर्वाश में द्विवेदी जी की है ! ३. प्रमागाः (क) हस्त लिखित प्रति किसी और की लिखी हुई है परन्तु कहीं संशोधन
नहीं है। जान पड़ता है कि द्विवेदी जी के वचन का अनुलेख है। (स्व) नीचे स्याही से द्विवेदी जी के हस्ताक्षर हैं और फिर काटकर पेंसिल से
कस्यचित् कान्यकुञ्जस्य' कर दिया गया है । .४ प्रमाण: (क) लिखावट द्विवेदी जी की है।
(ख) हाशिये पर श्रादेश किया है-~-पं० सुन्दरलाल जी, कृपा करके इस लेख
को ध्यान से पढ़ लीजिएगा । निन्दा से 'सरस्वती' को बचाइएगा ! ५ 'सरस्वती' की विषय-सूची में इम नेम्बकों के नाम के सामने कोष्ठक में इनके स्थान का
मी किया गया है