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दपलाया तो वा 'कल्लू अल्हत' बनकर सरगौ नरक ठकाना नाहि का पाल्हा गाया कभी तो गनानन गणेश गर्वसाइ २ के नाम स 'जम्बुको न्याय का रचना की और कभी 'पर्यालोचक' 3 के नाम से ज्योतिषवेदांग की आलोचना की। कही 'कवियों की ऊर्मिला-विषयक उदासीनता' दूर करने ‘भारत का नौका-नयन' दिग्वलाने, 'बाली द्वीप में हिन्दुओ का राज्य' सिद्ध करने अथवा 'मेघदूत-रहस्य' खोलने के लिए 'भुजंग भूपण भट्टाचार्य बने, तो कहीं 'अमेरिका के अखबार', 'रामकहानी की समालोचना', 'अलबस्नी'
जित्त हो उठती । कल्पित नाम से द्विवेदी जी के नत की पुष्टि होती थी। (ङ) लेख के नीचे स्वाभाविक रूप से M P.D. लिखकर काट दिया है। और उसके ऊपर
कमलाकिशोर त्रिपाठी लिखा है। 1. उपयुक्त पाल्हे का 'द्विवेदी-काव्यमाला' मे समावेश, द्विवेदी-अभिनन्दन-ग्रन्थ', पृष्ठ
५३२ अादि से प्रमाणित। २ हस्त-लिखित प्रति में पहले गजानन गणेश गर्नखडे का सानुप्रास नाम लेखक के रूप में
दिया फिर किसी कारणवश काट दिया और कविता अपने ही नाम ने छपाई-‘मरस्वती'
के स्वीकृत लेखो का बंइल, १६०६ ई०, कलाभवन, काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा । ३ काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा के कार्यालय में रक्षित बंडल २ (क) के पत्रो मे
प्रमाणित ४. प्रस्तुत अवच्छेद में वर्णित रचनाओं का स्थान और कालःसमाचार पत्रों का विराट रूप.....
मरलती १६०४ ई०, पृ० ३६७ सरगौ नरक ठेकना नाहि. ......
१६०६ ई., पृ० ३८ जम्बुकी न्याय....
,, ,, पृ० २१७ ज्योतिष वेदाग......
१६०७ ई.. पृ० २०,१८६ कवियों की उर्मिता-विषयक उदासीनता...
१६०८ ई०, पृ. ३१३ भारत का नौकानयन...
१६०६ ई०, पृ० ३०५ बाली द्वीप में हिन्दुओ का राज्य ...
१६११ ई०, पृ० २१६ मंघदत-रहस्य...
... पृ०६६५ अमेरिका के अखबार
१६०६ ई०, पृ० १२४ राम कहानी की समालोचना" अलबरूनी...
१६११ ई०, पृ. २४२ भारतवर्ष का चलन बाजार मिक्का...
१६१२ ई०, पृ० ६६ मस्तिष्क ......
१६० ई०, पृ. २२१ स्त्रियों के विषय में अयल्प निवेदन ..
१६१३ ई०, पृ० ३८४ शब्दों के रूपान्तर"
१६२४ ई०, पृ० ४८३ ५. प्रमाण:(क) दनक लेख म टमरे के लेसों नेसा कोई संशोधन नहीं है (ब) लिन न मन्द द्विनट की है