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उत्तरी ध्रुव की यात्रा और वहा की रुकीमा जाति ' श्रादि भौगोलिक निवव दूसरे प्रकार
अन्तर्गत है । छ वर्ग के निबन्धों मे उद्योग-शिल्प आदि विषयों पर विचार किया गया है । 'खेती की बुरी दशा', २ हिन्दुस्तान का व्यापार' भारत मे औद्योगिक शिक्षा ४ यदि लेखों में प्रायः ग्रत्य पत्रिकाथा, रिपोटों आदि के आधार पर उपयोगी बातें कही गई हैं । इनके मूल में भारत को औद्योगिक रूप में उन्नत देखने की उत्कट अभिलापा सन्निहित है। इस वर्ग के त्रिधा मे नामयिकता का सबसे अधिक समावेश हुआ है ।
सातव वर्ग के निबन्ध भाषा-व्याकरण आदि को लेकर लिखे गए हैं | साहित्यिक निबन्धों के अन्तर्गत इन्हें न समाविष्ट करने के दो प्रमुख कारण है- एक तो ये निबन्ध प्रधानतया भाषा में सम्बद्ध है और दूसरे व्याकरण की दृष्टि ही इनमे मुख्य है । इन निवन्धों की रचना का श्रेय भाषा - मस्कारक द्विवेदी को है । 'भाषा और व्याकरण', " हिन्दी नवरत्न ६ आदि निबन्ध हिन्दी गद्यभाषा की व्याकरण - विरुद्ध उच्छं बलगति को रोकने तथा उसके शुद्ध और व्याकरग्गर्भगत रूप की प्रतिष्ठा करने की सदाकाक्षा में लिखे गए । उनके अन्तिम वर्ग के निबन्ध श्राध्यात्मिक विषयों से सम्बद्ध है। ये निबन्ध द्विवेदी जी की भक्तिभावना तथा श्रात्मजिज्ञासा के परिचायक है । आत्माभिव्यंजकता और कला की दृष्टि से इन निबन्धों का महत्वपूर्ण स्थान है । 'सरस्वती' - सम्पादन के पूर्व ही ‘निरीश्वरवाद’७ 'आत्मा', 'जान' - जैसे निवन्ध द्विवेदी जी लिख चुके थे । उसके पश्चात् तो 'ईश्वर', १० श्रात्मा के अमरत्व का वैज्ञानिक प्रमाण', ११ 'पुनर्जन्म का प्रत्य प्रमाण', १२ ' सृष्टि विचार', १३ 'परमात्मा की परिभाषा' १४ आदि आभ्यात्मिक निबन्धों की १. 'लेखाजलि' में संकलित
२. 'सरस्वती', १६१८००८
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४.
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૪ ६५. ।
४२४ तथा 'सरस्वती', १६०६ ई०, प०६० ।
६६ ।
३११ ।
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६ 'सरस्वती' १६०१ ई, पृ० १४ |
१०. 'सरस्वती', १६०४ ई०, प०२७८, ३०२, ३५२, ३६२ ।
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